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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . भीस्थानाङ्गपत्र सानुवाद ॥३८६॥ EXKXXKKKX तादिः XXXXXXXXXXXXXXXXXXX शीलाचारथी हीन छ ३,तेमज एक शरीरथी अदीन अने श्रेष्ठ शीलाचारवाळो छ ४ (८), एक शरीरथी दीन अने दानादि क्रियाथी ४ स्थान पण हीन-दीन व्यवहारवाळो छ १, एक शरीरथी दीन पग अदीन व्यवहार वाळो-दानादि क्रियाथी श्रेष्ठ छे २, एक शरीरथी अदीन काध्ययने पण हीन व्यवहारवाळो छ ३, तेमज एक शरीरथी अदीन अने श्रेष्ठ व्यवहारवाळो छ ४ (९), चार प्रकारना पुरुषो कह्या छे, ते उद्देशः २ आ प्रमाणे-एक शरीरथी दीन अने हीन पराक्रमवाळो छे १, एक शरीरथी दीन पण पराक्रम थी अदीन २, एक शरीरथी अदीन प्रतिसंलीनपण पराक्रमथी दीन ३ तेमज एक शरीरथी अदीन अने पराक्रमथी पण अदीन छ ४ (१०), एवीरीते दरेक सूत्रोमां चार भांगाओ कहेवा. चार प्रकारना पुरुषो कह्या छे, ते आ प्रमाणे-एक शरीरथी दीन अने दीन वृत्ति-दीननी माफक वर्तन(आजी दीनादिविका)वाळो छ १, एक शरीरथी दीन पण अदीन वर्तनवाळो छ २,एक शरीरथी अदीन पण दीन वर्तनवाळो छ ३ तेमज एक प्रकाराः शरीरथी अदीन अने अदीन वर्तनवाळो छ ४ (११), एक शरीरथी दीन अने हीन जातिवाळो छ १, एक शरीरथी दीन पण श्रेष्ठ जातिवाळो छ २, एक शरीरथी अदीन पण हीन जातिवाळो छ ३ तेमज एक शरीरथी अदीन अने श्रेष्ठ जातिधाको छे ४ सू०२७८ ७९ (१२), एक शरीरथी दीन अने दीनभाषी-दीन वचन बोलनार छ १, एक शरीरथी दीन पण अदीनभाषी छ २, एक शरीरथी अदीन पण दीनभाषी छे ३ तेमज एक शरीरथी अदीन अने अदीनभाषी छे ४ (१३),एक शरीरथी दीन अने दीननी माफक देखाय छ १, एक शरीरथी दीन पण अदीननी माफक देखाय छ २, एक शरीरथी अदीन पण दीननी माफक देखाय छे ३ तेमज एक शरीरथी अदीन अने अदीननी माफक देखाय छे ४(१४), चार प्रकारे पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-एक शरीरथी दीन अने दीन नायकनी सेवा करनार छे १, एक शरीरथी दीन पण अदीन नायकनी सेवा करनार के २, एक शरीरथी अदीन पण दीन EXI||३८६ ॥ xxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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