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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥३८४ ॥ (RatakKKAKKKK४४४४४४४ बाकीना भांगा जाणवा. (सू० २७५) हमणां ज गुप्तेंद्रियपणुं का, अने इंद्रियो अवगाहनाना आश्रयवाळी छ माटे अवगाहनानुं निरूपण करनारुं सूत्र कहे छे-अवगाहे छे-रहे छे जेणीने विषे, अथवा जीवो जेणीनो आश्रय करे छे ते अवगाहना, अर्थात् शरीर. द्रव्यथी अवगाहना ते द्रव्यावगाहना, एम ज सर्वत्र जाणवू. तत्र द्रव्यथी अनंत द्रव्यरूप छ, अर्थात् अनंत परमाणुमयी छ. क्षेत्रथी असंख्यात प्रदेशमा रहेनारी, कालथी असंख्यात समयनी स्थितिवाळी, भावथी वर्णादि अनंत गुणवाळी छे. अथवा विवक्षित द्रव्यना आधारभूत आकाशप्रदेशो ते अवगाहना; तेमां द्रव्योनी अवगाहना ते द्रव्यावगाहना, क्षेत्र ए ज अवगाहना ते क्षेत्रावगहना, कालनी अवगाहना एटले मनुष्यक्षेत्रमा वर्तती ते कालावगाहना अने भाव(पर्याय )वाळा द्रव्योनी अवगाहना ते भावावगाहना भावनी मुख्यताथी कहेली छे. अथवा आश्रय मात्र अवगाहना, तेमां पर्यायोबडे द्रव्यनो आश्रय ते द्रव्यावगाहना, एमज क्षेत्रनो अने कालनो पर्यायोबडे आश्रय करवो-पर्यायोनो द्रव्यवडे आश्रय करवो अथवा बीजी रीते योजना करीने व्याख्या करवी. (सू० २७६ ) अवगाहनानी प्ररूपणा प्रज्ञप्तिओने विषे करेली छे, माटे प्रज्ञप्तिनुं चतुःस्थानक सूत्र जणावे छे-विशेष! जणाय छे अर्थो जेणीने विषे ते प्रज्ञप्तिओ, आचारादि अंग सूत्रथी बाहिर ते अंगवाया, जे प्रमाणे नाम छे ते प्रमाणे तेमां वर्णनवाळी कालिकसूत्ररूप छे, तेमा सूर्यप्रज्ञप्ति, पंचम अंगना उपांगभूत छे अने जंबूद्वीपपज्ञप्ति छटा अंगना उपांगरूप छ, बाकीनी बे प्रज्ञप्ति प्रकीर्णकरूप छे. पांचमी व्याख्याप्रज्ञप्ति ( भगवती ) छे, परंतु ते अंगप्रविष्ट छ माटे अहीं आ चार ज कहेली छे. ॥ चतुःस्थानकना प्रथम उद्देशकनी दीकानो अनुवाद समाप्त ॥ xxxxxxxxxx EXKKKKKKXEXXXKAKKIXXXR ४ स्थानकाभ्ययने उद्देशः१ अग्रमाहभ्यः विकृतयः कूटागाराः सू० २७३-७५ ३८४॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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