SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ३३४ ॥ www.kobatirth.org छ. हवे शुं कहें थाय छे ? ते माटे कहे छे के सकल दुःखोना अंतने करे छे अर्थात् शारीरिक अने मानसिक सर्व दुःखोना अंतने करे छे, जेने तथाविध तप अने वेदना नथी ते दीर्घकालीन पर्यायवडे कोईपण सिद्ध थयो छे ? आ शंकाने दूर करवा माटे कहे छे के'जहा से ' इत्यादि ० प्रथम जिन ऋषभदेवना पहेला पुत्र, एकसो पुत्रमां मोटा पुत्र, पूर्व दक्षिण पश्चिमना समुद्र अने हिमवान पर्वतरूप चार अंत-छेडावाळी पृथ्वीना स्वामीपणाए चातुरंत, एवा जे भरत नामना राजा चक्रवर्ती ते पूर्वभवमा कमी, सर्वार्थसिद्ध विमानथी च्यवीने, चक्रवर्त्तीपणामां उत्पन्न थईने, राज्यावस्थामां ज केवळज्ञानने उत्पन्न करीने एक लाख पूर्वनी प्रव्रज्याचाळा तथाविध तप अने वेदना रहित ज मोक्षने प्राप्त थया. आ पहेली अंतक्रिया समजवी. (१), 'अहावरे' ति० त्यारबाद बीजी अंतक्रिया (पूर्वनी अपेक्षाए अन्य अर्थात् बीजाना स्थानमां कहेवाथी बीजी) बहुभारे कर्मेवडे महाकर्मवाळो थयो थको प्रत्यायात अथवा प्रत्याजात - मनुष्य भवने प्राप्त थयेलने-महाकर्मवडे मनुष्यमां आववापणाए ते महाकर्मनो क्षय करवा माटे तथाप्रकारनं घोर तप होय छे, एम वेदना उपसर्ग विगेर पण कर्मना उदयथी प्राप्त थवा योग्य छेथाय छे, 'निरुद्धेने' ति० अल्पेन जेम श्रीकृष्णना लघु बंधु गजसुकुमाल, भगवान् अरिष्टनेमिनी समीपे प्रव्रज्या स्वीकारीने श्मशानमां कायोत्सर्गरूप महातपना करनार, शिर उपर मूकेल जाज्वल्यमान अंगाराथी उत्पन्न थयेल अत्यंत वेदनावाळा, थोडा ज समयना पर्यायवडे सिद्ध थया. शेष हकीकत सुगम छे. (२), 'अहावरे' त्यादि० सुगम छे. सनत्कुमार चोथा चक्रवर्ती, ते तो महातपवाळा अने महावेदनावाळा रोग सहित होवाथी दीर्घकालीन पर्यायवडे ते भवमां सिद्धिना अभावथी भवांतरमां सिद्धत्वने पामनार होवाथी त्रीजी अंतक्रिया (३), 'अहावरे' त्यादि० सरळ छे. जेम मरुदेवी माता, पहेला जिन ऋषभदेवनी For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ***** ४ स्थानकाध्ययने उद्देशः १ अन्तक्रियाः सू० २३५ | ३३४ ॥
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy