SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भेटते हैं और खुद को धनभागी समजते हैं। हिल स्टेशनों पर भटकते फिरने से आत्मा अशुभ कर्मों को उपार्जित करती है, पाप से भारी बनती है और अन्त में संसार समुद्र में डूब जाती है, किन्तु तीर्थ स्थलों की यात्रा करने से, उस भूमि की स्पर्शना करने से आत्मा पाप के बोज से हल्की बनती है, उसकी भव भ्रमणा मिट जाती हैं। अनंतानंत केवलज्ञानी, ऋषि, मुनि, देवेन्द्र और मनुष्य एक साथ एकत्रित होकर प्रयास करे तो ही शायद इस तीर्थ का वर्णन हो सकता है। महापुरुषों द्वारा श्लाघनीय, वंदनीय एवं पूजनीय, इस तीर्थ की महिमा शब्दों में कहना मुझ अज्ञानी के लिए बिन्दु में सिन्धु समाने जैसा है। यह लघु पुस्तिका यात्रिकों की संगी /साथी बनकर प्रभु भक्ति में उनकी आवश्यकता की पूर्ति करेगी। इसमें भाववाही/ प्राचीन / सुमधुर स्तुतियाँ, चैत्यवंदन, स्तवन एवं आर्वाचीन भक्तिगीत संकलित है, जो प्रभु एवं गिरिराज की भक्ति के लिए पुष्ट आलंबन / सहारा बन जायेंगे। मैं कामना करता हूँ कि इन भावपूर्ण स्तुतियों स्तवनों और गीतों से आपके हृदय के तार झंकृत हों, आप शुभ भावों में लीन बनें और कर्म खपाने में यह पुस्तिका निमित्त बने । अन्त में जैसे सरिता सागर में समा जाती है वैसे हमारी आत्मा भी भक्ति योग द्वारा में समा जाये यही शुभाभिलाषा । प्रभु For Private and Personal Use Only महेन्द्रसागर
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy