SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राये ए गिरि शाश्वतो ए, भवजल तरवा जहाज. मणि माणेक मुक्ताफले ए, रजत कनकनां फूल. पूजो० केसर चंदन घसी घणां ए, बीजी वस्तु अमूल. पूजो. २ छठे अंगे दाखीओ ए, आठमे अंगे लाख. पूजो० स्थिरावलि पयन्ने वरणव्यो ए, ए आगमनी साख. पूजो. ३ विमल करे भवि लोकने रे, तेणे विमलाचल जाण. पूजो० शुक राजाथी विस्तों ए, शत्रुजय गुणखाण. पूजो..४ पुंडरिक गणधरथी थयो ए, पुंडरिकगिरि गुणधाम. पूजो० सुरनर कृत एम जाणी ए, ए उत्तम एकवीश नाम.पूजो. ५ ए गिरिवरना गुण घणाए, नाणीए नवि कहेवाय. पूजो० जाणे पण कही नवि शके, ए मूक गुडने न्याय. पूजो. ६ गिरिवर फरसन नवि को ए, ते रह्यो गरभावास. पूजो० गमन दर्शन फरशन कोए, पूरे मननी आश. पूजो. ७ आज महोदय मे लह्यो, ए पाम्यो प्रमोद रसाल. पूजो० मणि उद्योत गिरि सेवतां, ए घेर घेर मंगल माल. पूजो.८ २४. सिद्धाचलना वासी सिद्धाचलना वासी, विमलाचलना वासी, जिनजी प्यारा आदिनाथने वंदन हमारा; प्रभुजी- मुखडु मलके, नयनोमांथी वरसे, अमी रसधारा आदिनाथ ने वंदन हमारा. जिनजी. १ प्रभुजीनुं मुखडुं छे मनक मिलाकर, दिलमें भक्तिकी ज्योत जलाकर; For Private and Personal Use Only
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy