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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ शुद्ध सुवासन चूरण आप्युं, मिथ्या पंक शोधनने रे, आतमभाव थयो मुज निर्मल, आनंदमय तुम भजने रे. अखय निधान तुज समकित पामी, कुण वंछे चल धनने रे, शांत सुधारस नयन कचोले, सींचो सेवक तनने रे. ५ बाह्य अभ्यंतर शत्रु केरो, भय न होवे मुजने रे, सेवक सुखीयो सुजश विलासि, ते महिमा प्रभु तुजने रे. ६ नाममंत्र तुमारो साध्यो, ते थयो जगमोहनने रे, तुज मुखमुद्रा निरखी हरखुं, जिम चातक जलधरने रे. ७ तुजविण अवरने देव करीने, नवि चाहु फरी फरीने रे ज्ञानविमल कहे भवजल तारो, सेवक बाह्य ग्रहीने रे. २१. शेत्रुंजा गढना वासी रे... शेत्रुंजा गढना वासी रे, मुजरो मानजो रे, सेवकनी सुणी वातो रे, दिलमां धारजो रे, प्रभु में दीठो तुम देदार, आज मने उपन्यो हरख अपार, साहिबानी सेवा रे, भव दुःख भांगशे रे, एक अरज अमारी रे, दिलमां धारज्यो रे. चोराशी लाख फेरा रे, दूर निवारज्यो रे, प्रभु मने दुर्गति पडतो राख, दरिशन वहेलुं रे दाख दोलत सवाई रे, सोरठ देशनी रे, बलिहारी हुं जाउं रे, प्रभु तारा वेशनी रे, प्रभु तारुं रूडुं दीतुं रूप, मोह्या सुरनर वृन्द ने भूप. तीरथ को नहि रे, शत्रुंजय सारीखुं रे, ६३ For Private and Personal Use Only ८ २ ३
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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