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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मूल देवने सन्मुख राजे, श्री पुंडरिक गणधार; तुमे तो० पंच क्रोडशुं चैत्री पूनमे, वरीया शिववधु नार. सहस कूट दक्षिण बिराजे, जिनवर सहस चोविस; चउदसे बावन गणधरना, पगलां पूजो जगीश. तुमे तो० प्रभुनां पगलां रायण हेठे, पूजी परमानंद; अष्टापद चौविश जिनेश्वर, सम्मेत वीस जीणंद तुमे तो० मेरु पर्वत चैत्य घणेरा, चउमुख बिंब अनेक; बावन जिनालय देवल निरखी, हरख लहुं अतिरेक. तुमे तो० सहस्रफणा ने शामला पासजी, समवसरण मंडाण ; छीपावसीने खरतर वसी कोई, प्रेमावसी परमाण. तुमे तो० संवत अढार ओगण पचाशे, फागण अष्टमी दिन; उज्ज्वल पक्षे उज्ज्वल हुओ, गिरि फरस्या मुज मन तुमे तो० ईत्यादिक जिन बिंब निहाली, सांभली सिद्धनी श्रेण; उत्तम गिरिवर एनी परे विसरे, पद्मविजय कहे तेम. तुमे तो० ७. ते दिन क्यारे आवशे... · Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( राग सोना रूपा के फूलडे ...) ते दिन क्यारे आवशे, श्री सिद्धाचल जाशुं; ऋषभ जिणंद जुहारीने सुरजकुंडमां न्हाशुं . समवसरणमां बेसीने, जिनवरनी वाणी; सांभल साचे मने, परमारथ जाणी. समकित व्रत सुधा धरी, सद्गुरुने वंदी; पाप सर्व आलोईने, निज आतम निंदी. ५१ For Private and Personal Use Only १ २ ३
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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