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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) श्री शत्रुंजय मंडण आदिदेव श्री शत्रुंजय मंडण आदिदेव, हुं अहोनिशि सारुं तास सेव रायणतले पगला प्रभुतणां, पूजीश सफल फूल सोहामणा. १ वीश तीर्थंकर समोसर्या, विमलाचल उपर गुण भर्या गिरि कंडणे आव्या नेमनाथ, सो जिनवर मेलो मुक्तिसाथ . २ श्री सोहमस्वामी उपदिश्या, जंबू गणधरने मन वस्या; पुंडरीकगिरि महिमा एहमांहि, हुं आगम समरूं मन उच्छांहि. ३ चक्केसरी गोमुख कवड यक्ष, मनवंछित पूर्ण कल्पवृक्ष; सिद्धक्षेत्र सहाई देवता, भणे नंदसूरि तुम पाय सेवता ४ (१३) वंदु सदा शत्रुंजय तीर्थराजे, बंदु सदा शत्रुंजय तीर्थराजे, चूडामणि आदि जिणंद गाजे; दुट्ठ कम्मट्ठ विरोध भाजे, मानुं शिवारोहण एह पाजे. १ देवाधिदेवा कृत देवसेवा, संभारीये ज्युं गज चित्त रेवा; सव्वेवि ते थुत्ति थुया महिया, अणागया संपई जे ( अ ) अईअ. २ जे महोना योध वडा कहाया, चत्तारि दुट्ठा कसिणा कसाया; ते जीतीये आगम चक्खु पामी, संसारपारुत्तरणाय धामी. ३ चक्केसरी गोमुह देवयुत्ता, रक्षा करी सेवय भावपत्ता: दियो सया निम्मल नाण लच्छी, होवे प्रसन्ना शिवसिद्धि लच्छी. ३९ For Private and Personal Use Only
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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