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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( प्रथम इरियावहियं करके तीन खमासमण, सकलकुशल) चैत्यवंदन सर्वतीर्थ शिरोमणि, शत्रुंजय सुखकार; घेटी पगलां पूजतां, सफल थाय अवतार. पूर्व नवाणुं पधारीया, जिहां श्री अरिहंत; ते पगलांने वंदीए, आणि मन अहिखंत. चोविहारो छट्ठ करी, घेटी पगले जाय; धर्मरत्न पसायथी, मन वांछित फल थाय. थोय बार पर्षदा बेसे, ईन्द्र इन्द्राणी राय, नवकमल रचे सुर, तिहां ठवता प्रभु पाय, देवदुंदुभि वाजे, कुसुम वृष्टि बहु हुंत, एवा जिन चोवीशे, पूजो एकण चित्त. २६ १ For Private and Personal Use Only २ स्तवन सिद्धाचल वंदो रे नरनारी, नरनारी, नरनारी, नाभिराया मरुदेवा नंदन ऋषभदेव सुखकारी. पुंडरिक पमुहा मुनिवर सिद्धा, आतमतत्त्व विचारी. शिवसुख कारण भवदुःख वारण, त्रिभुवन जन हितकारी . ३ समकित शुद्ध करण ए तीरथ, मोह मिथ्यात्व निवारी ज्ञान उद्योत प्रभु केवल धारी, भक्ति करुं एक तारी. ( जय वीयराय, अरिहंत चेइयाणं, अन्नत्थ, एक नवकार का काउस्सग्ग, नमोऽर्हत्) ४ ५ ३
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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