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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चौथे पुंडरिक स्वामी की स्तुति, चैत्यवंदन, स्तवन, थोय स्तुति जे आदि जिननी आण पामी सिद्धगिरिए आवता, अणसण करी एक मासनुं मुनि पंचक्रोडशुं सिद्धता, जे नामथी पुंडरिकगिरि एम तिहुं जगत बिरदावता, पुंडरिकस्वामी वंदता मुज पाप सहू दूरे थता. (तीन खमासमण, सकलकुशल) चैत्यवंदन आदीश्वर जिनरायनो, गणधर गुणवंत; प्रगट नाम पुंडरिक जास, महीमांहे महंत. पंच कोडी साथे मुणींद, अणसण तिहां कीध; शुक्लध्यान ध्याता अमूल, केवल वर लीध. चैत्री पूनमने दिने ए, पाम्या पद महानंद: ते दिनथी पुंडरीगिरि, नाम दान सुखकंद. (जंकिंचि, नमुत्थुणं, जावंति, जावंत, नमोऽर्हत्) स्तवन एक दिन पुंडरीक गणधरूं रे लाल, पूछे श्री आदिजिणंद- सुखकारी रे; कहीये ते भवजल ऊतरी रे लाल, पामीश परमानंद भववारी रे. कहे जिन इण गिरि पामशो रे लाल, २२ For Private and Personal Use Only २ एक० १
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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