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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जावंत के वि साहू सूत्र जावंत के वि साहू, भरहेरवय महाविदेहेअ सब्वेसिं तेसिं पणओ, तिविहेण तिदंड विरयाणं. _ नमोऽर्हत् सूत्र नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः स्तवन सिद्धाचलगिरि भेट्या रे, धन्य भाग्य हमारां; ए गिरिवरनो महिमा मोटो, कहेतां न आवे पार; रायण रूख समोसर्या स्वामी, पूर्व नव्वाणुं वारा रे,धन्य. १ मूलनायक श्री आदि जिनेश्वर, चौमुख प्रतिमा चार; अष्ट द्रव्यशुं पूजो भावे समकित मूल आधारा रे. धन्य. २ भाव भक्तिशुं प्रभु गुण गावे, अपना जन्म सुधारा; यात्रा करी भविजन शुभ भावे, नरक तिर्यंच गति वारा रे. धन्य.३ दूर देशांतरथी हुं आव्यो, श्रवणे सुणी गुण तोरा. पतित उद्धारण बिरुद तमारं, ए तीरथ जग सारा रे. धन्य.४ संवत अढार त्यांसी मास अषाढो, वदि आठम भोमवारा; प्रभुजी के चरण प्रताप के संघमें, क्षमारतन प्रभु प्यारा रे. धन्य.५ श्री उवसग्गहरं स्तवनम् उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्म-घण मुक्कं; १० For Private and Personal Use Only
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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