SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुंडरिकस्वामी मन विसरामी, मुखमुद्रा अद्भुत झलके, पुंडरिकसम श्वास सुगंधी, दिव्य तेजे नयनो चलके; चैत्री पूनमने दिन पुंडरिक, पदवी वरिया सुख छलके, पांच क्रोडशुं सिद्धि वर्या छो, नमन करुं मुज मन मलके.१५ करूणासिंधु, त्रिभुवन नायक, तुं मुज चित्तमां नित्य रमे, चाकरी चाहुं अहोनिश तारी, भवथी माझं मन विरमे; श्री सिद्धाचल मंडन साहिब, तुज चरणे सुरनर प्रणमे, सम्यग् दर्शन हर्षने आपो, विश्वना तारणहार तमे. १६ श्री शत्रुजय तीर्थपति श्री आदिजिन स्तुतियाँ (राग : हरिगीत) जेणे उगायुं विश्वने अज्ञानना अंधारथी, जेणे सजाव्युं विश्वने संस्कारना शणगारथी; जेणे बचाव्युं विश्वने संसार-पारावारथी, ते आदिनाथ जिनेन्द्रने पंचांगभावे हुँ नमुं. जेओ युगादिकालमा पहेला ज राजेश्वर हता, जेओ युगादिकालमा पहेला ज संयमधर हता; जेओ युगादिकालमा पहेला ज तीर्थकर हता, ते आदिनाथ जिनेन्द्रने पंचांगभावे हुँ नमुं. सहजात अवधिज्ञानथी जेणे बधुं जाण्यु अने, स्त्री-पुरुषनी सौ प्रथम दर्शावी कला आ जगतने; ने नीतिमय विश्वस्थिति पाम्युं जगत् जेनी कने, ते आदिनाथ जिनेन्द्रने पंचांगभाव हुं नमुं. १९ १७ १७ १८ For Private and Personal Use Only
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy