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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेह थकी सिद्धाचले, एक मुनिने दान; देतां लाभ घणो हुवे, (महातीर्थ) अभिधान. सि. १० प्राये ए गिरि शाश्वतो, रहेशे काल अनंत; शत्रुजय महातम सुणी, नमो (शाश्वतगिरि) संत, सि. ११ गौ नारी बालक मुनि, चउ हत्या करनार; यात्रा करता कार्तिकी, न रहे पाप लगार. जे परदारा लंपटी, चोरीना करनार. देवद्रव्य गुरुद्रव्यना, जे वली चोहणहार, चैत्री कार्तिकी पूनमे, करे यात्रा ईणे ठाम; तप तपतां पातिक गले, तिणे (दृढशक्ति) नाम. सि. १२ भवभय पामी नीकल्या, थावच्चा-सुत जेह; सहस मुनिशुं शिव वर्या, (मुक्तिनिलय गिरि) तेह. सि. १३ चंदा सूरज बेउ जणा, ऊभा इणे गिरि शृंग: वधावियो वर्णन करी, (पुष्पदंत) गिरि रंग. सि. १४ कर्म कठण भवजल तजी, ईहां पाम्या शिवसद्म; प्राणी पद्म निरंजनी, वंदो गिरि (महापद्म). सि. १५ शिववहू विवाह उत्सवे, मंडप रचियो सार; मुनिवर वर बेठक भणी, (पृथ्वीपीठ) मनोहर. सि. १६ श्री (सुभद्रगिरि) नमो, भद्र ते मंगल रुप; जल तरु रज गिरिवर तणी, शिष चडावे भूप. सि. १७ विद्याधर-सुर अप्सरा, नदी शेजी विलास; करता हरता पापने, भजीए भवि कैलास. सि. १८ बीजा निर्वाणी प्रभु, गई चोवीशी मोझार; १४४ For Private and Personal Use Only
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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