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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || श्री सिद्धाचलजी के इक्कीस खमासमणों के दोहे || सिद्धाचल समरूं सदा, सोरठ देश मोझार; मनुष्य जन्म पामी करी वंदु वार हजार. अंग वसन मन भूमिका, पूजोपगरण सार; न्यायद्रव्य विधिशुद्धता, शुद्धि सात प्रकार. कार्तिक सुदि पूनम दिने, दशकोटी परिवार; द्राविड वारिखिल्लजी, सिद्ध थया निरधार. तिण कारण कार्तिक दिने, संघ सयल परिवार; आदि जिन सन्मुख रही, खमासमण बहु वार; एकवीश नामे वर्णव्यो, तीहां पहेलुं अभिधान; (शत्रुजय) शुकराजथी, जनक वचन बहुमान, (सिद्धाचल समरूं सदा, यह दोहा संपूर्ण बोलकर खमासमण देना) सि.१ समोसर्या सिद्धाचले, श्री पुंडरिक गणधार; लाख सवा महातम कर्दा, सुर नर सभा मोझार. चैत्री पूनमने दिने, करी अणसण एक मास; पांच कोडि मुनि साथ\, मुक्ति-निलयमा वास. तिणे कारण (पुंडरिकगिरि), नाम थयुं विख्यात; मन वच काये वंदीए; उठी नित्य प्रभात. सि.२ वीश कोडिशुं पांडवा, मोक्ष गया इणे ठाम; एम अनंत मुगते गया, (सिद्धक्षेत्र) तिणे नाम. सि. ३ अडसठ तीरथ न्हावतां, अंतरंग घडी एक; १४२ For Private and Personal Use Only
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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