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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवन अजितजिनेश्वर सेवनारे, करतां पाप पलाय; जिनवर सेवो. सेवो सेवोरे भविकजन! सेवो, प्रभु शिवदुखदायक मेवो, प्रभु सेवे सिद्धि सुहाय. जिनवर. मिथ्या-मोह निवारीने रे, क्षायिक-रत्न ग्रहाय; चारित्र-मोह हठावतारे, स्थिरता क्षायिक थाय. जिनवर० १ क्षपक-श्रेणि आरोहीने रे, शुक्ल-ध्यानप्रयोग; ज्ञानावरणीयादिक हणीरे, क्षायिक नवगुण-भोग.जिनवर०२ अष्टकर्मना नाशथीरे, गुण-अष्टक प्रगटाय; एक समय समश्रेणीए रे, मुक्तिस्थान सुहाय. जिनवर० ३ नात्यंताभाव मुक्तिनोरे, जडिममयी नहि खास; व्योमपरे नहि व्यापीनीरे, नहि व्यावृत्ति-विलास. जिनवर० ४ सादी अनंत स्थितिथीरे, सिद्ध बुद्ध भगवंत; झलहल ज्योति ज्यां झगमगेरे, शेयतणो नहि अंत.जिनवर०५ परज्ञेय ध्रुवता त्रिकालमारे, उत्पत्ति-व्ययसाथ; .. निजज्ञेय ध्रुवता अनन्तनोरे, पर्यायसह शिवनाथ.जिनवर०६ पर जाणे परमां न परिणमेरे, अशुद्धभाव व्यतीत; बुद्धिसागर ध्यानथीरे, थावे ध्यानी अजित. जिनवर० ७ थोय विजया सुत वंदो, तेजथी ज्युं दिणंदो, शीतलताए चंदो, धीरताए गिरींदो; मुख जिम अरविंदो, जास सेवे सुरिंदों, लहो परमाणंदो, सेवतां सुख कंदो. १०३ For Private and Personal Use Only
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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