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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सेवक ने उत्तर दिया "श्रेष्ठिन् | आपकी हवेली में ही जैन शासन के सम्राट आर्य महागिरिजी एवं आर्य सुहस्तिसूरिजी विराज रहे हैं । आज प्रातः ही पधारे हैं वे । उनका शिष्यवृन्द स्वाध्याय कर रहा है उसकी ध्वनि सुनाई दे रही है यह .... " अवन्तिसुकुमाल के आश्चर्य का पार न रहा। ये मुनिजन कहां से जानते है उस मलिनी गुल्म विमान को....! अवश्य ही ये वहाँ गये होगें कहाँ देवभव का सुख और कहां मानव जीवन का सुख । जमीन आसमान का फर्क है । मैं पुनः उसी सुख को प्राप्त करुगा। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नलिनी गुल्म विमान के सुखों को पाने के लिये वह एक बच्चे की तरह मचल उठा । उसी क्षण वह खड़ा हुआ तो पत्नियों ने पूछा"नाथ....! आपको अभी क्या हुआ था...? और भाप कहाँ जा रहे हो....?" "तुम यहीं रहो...! मैं अभी आता हूं...." अवन्तिसुकुमाल अपने कक्ष से निकलकर सीढ़ियां उतरकर वाहनशाला में आया । मुनिवृन्द स्वाध्याय में मगन थे। भवन्तिसुकुमाल सीधा ही आचार्य आर्य सुहस्तिसूरिजी के पास पहुंचा। आचार्य श्री के पैरों में नमन करके बोला 1 हे करुणासागर प्रभु । अभी आप जो मधुर स्वरों में फरमा रहे थे । वह कहां का वर्णन है ? क्या आप वहां गये थे ?" आचार्य आर्य सुहस्तिसूरिजी ने फरमाया ** " वत्स ! मैं अपने शिष्यों के साथ नलिनीगुल्म विमान के वर्णन का स्वाध्याय कर रहा था। मैं इस जन्म में वहां कभी नहीं गया हू | किन्तु जिनेश्वर देवों ने जो फरमाया है वही मैं स्वाध्याय कर रहा हूँ" । 1. "प्रभु ! जैसा वर्णन आप फरमा रहे हो वह सभी मैं अनुभव करके आया हू ! मैं ग़त जन्म में नलिनीगुल्म विमान में देव था। प्रभु । मैं पुन: वही जाना चाहता हूं। वहां जाने का उपाय आप बता सकते हो क्या ?" अबन्ति सुकुमाल के दिल में तीव्र भावना पैदा हुई, देव विमान में जन्म लेने की । आर्य सुहस्तिसूरिजी ने कहा "बत्स जाने का उपाय मैं जानता हू। यदि तुझे [40] देवलोक क्या मोक्ष में भी नलिनीगुल्म नामक देव For Private and Personal Use Only
SR No.020739
Book TitleSiddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitratnasagar, Chandraratnasagar
PublisherRatnasagar Prakashan Nidhi
Publication Year1989
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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