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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवं मयणा सुन्दरों सहित नवपद सिद्धचक्रजी का विशाल सुन्दर एवं आकर्षक पट्ट है । इसी स्थान पर प्रतिवर्ष दो ओली होती है । Fa मुख्यद्वार की दाहिनी तरफ तीर्थपति श्री केशरियानाथ प्रभु विराजमान हैं । प्रतिमाजी अति आकर्षक एवं विशाल है श्यामवर्णी परिकर सहित प्रतिमा जी की खास विशेषता तो यह है कि इस प्रतिमा के मस्तक के पीछे केश को लटें हैं जो कि दोनों कन्धों पर लटक रही हैं। भगवान श्री ऋषभदेव जी ने संयम लेते समय जब लोच करना प्रारम्भ किया था और चार मुष्ठि लोच कर लेने पर इन्द्र महाराजा ने प्रभु से प्रार्थना की थी हे स्वामिन् श्री केशरियानाथ जी आपके पीछे के केश जो कि कन्धे पर लटक रहे हैं ये बड़े ही आकर्षक और रमणीय लग रहे हैं अतः इन्हें ऐसे ही रहने दीजिये । तब प्रभुजी ने भी इन्द्र की विनंति मान्य रखकर पीछे के केश का लोच नहीं किया था। प्रतिमाजी में भी यही दर्शाने का प्रयत्न किया गया है। कुल मिलाकर प्रतिमाजी दर्शनीय, बंदनीय साथ ही दुर्लभ भी है । श्री केशरियानाथ प्रभु के जिनालय के उपर महावीरस्वामीजी का जिनालय है प्रतिमाजी परिकर युक्त है । श्री केशरियाजी जिनालय से लगा हुआ ताम्रपत्र आगम भण्डार निर्माणाधीन है जो कि गच्छाधिपति पूज्य आचार्य देव श्री देवन्द्रसागरसूरीश्वरजी म. सा. की प्रेरणा से प्रारम्भ हुवा था । अभी उसका कार्य पू. आचार्य देव श्री दौलतसागरसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में चल रहा है। यहां भण्डार के बीच पंचम गणधर श्री सुधर्मा स्वामी जी की प्रतिमा विराजमान करने की योजना है। आगम भण्डार से लगा हुआ ही धातु की प्रतिमाजी का जिनालय है जो कि मकान के कमरे जैसा है। उसमें 57 प्रतिमा जी है । [33] For Private and Personal Use Only
SR No.020739
Book TitleSiddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitratnasagar, Chandraratnasagar
PublisherRatnasagar Prakashan Nidhi
Publication Year1989
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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