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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री सिध्द चक्राराधन केशरियानाथ महातीर्थ वर्तमान में श्रीपालमार्ग खाराकुआ पर श्री सिद्धचक्राराधन केशरियानाथ महातीर्थ तीर्थों की नगरी की तरह गगन चुम्बी जिनालयों से सुशोभित है । इस तीर्थ का इतिहास कोई ११ लाख वर्ष पूर्व का है । इतिहास बड़ा ही रोमांचक एवं अद्भुत है। आज से ११ लाख वर्ष पहले की बात है। तब भगवान मुनिसुव्रतस्वामी का शासनकाल था । भगवान श्री मुनिसुव्रतस्वामी के शासनकाल में अनेक धर्मात्मा राजा महाराजा हो गये उनमें अयोध्यापति महाराजा दशरथ नंदन श्री राम लक्ष्मण और सीताजी भो भगवान श्री मुनिसुव्रतस्वामी का शासन स्वीकार कर उनके अनुयायी बने थे। बात उस समय की है जब दशरथनंदन श्री राम और लक्ष्मण ने लंकापति राक्षसराज रावण का वध करके महासती सीता से मिले थे। यह पति पत्नि का मिलन अद्भुत था। काश"। उस मिलन का वर्णन इतिहासकारों ने किया होता तो....? किन्तु यह तो, तो की बात है ना....। श्रीराम जब सीता से मिले तो सीताजी उन्हें भेंट पड़ी जब श्रीराम अयोध्या लौटने लगे तो सीताजी ने कहा ? "स्वामी...।" पहले मेरे भगवान को पुष्पक विमान में विराजमान कीजिये फिर मैं आपके साथ आऊंगी." श्री राम ने पूछा "यह कौन से परमात्मा हैं और यहाँ कैसे आये हैं" ? तुम इन्हें साथ में चलने का आग्रह क्यों कर रही हो प्रिये....?" सीताजी ने उत्तर दिया देव....! मैं इन्हीं भगवान के शरण से सनाथ बनी हूँ""। जब रावण मुझे उठा लाया था तब वह मुझे राजमहल में नहीं ले गया उसने मुझे लंका कि अशोक वाटिका में लाकर रखा था। मेरे मन की मैं ही जानती हूँ नाथ....। आपके नाम का रटन ही मेंरे जीवन का मंत्र था उस समय मुझे याद आया कि परमात्मा की भक्ति में ऐसी शक्ति है कि वह भक्ति संसार से मुक्ति दिला देती है। [४] For Private and Personal Use Only
SR No.020739
Book TitleSiddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitratnasagar, Chandraratnasagar
PublisherRatnasagar Prakashan Nidhi
Publication Year1989
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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