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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में आया था तब मालवप्रदेश विद्या का केन्द्र माना जाता था । इस्वी सन् की सातवीं आठवीं सदी तक मालव देश की राजधानी का का नाम अवन्तिका था। किन्तु बाद में यह नगरी उज्जैन के नाम से प्रसिद्ध हो गई। उज्जैन नाम के सम्बन्ध में श्री दयाशंकर दुबे ने 'भारत के तीर्थ' नामक अपनी पुस्तक में बताया है कि अवन्तिका में राजा सुधन्वा राज्य करता था । वह जैन धर्मावलम्बी था । उसके समय में अवन्तिका नगरी अतीव विशाल नगरी थी। उसने इस अवन्तिका के प्राचीन नाम को बदलकर उज्जैन नाम रख दिया। तभी से यह नगरी उज्जैन के नाम से प्रसिद्ध हुई है। __उज्जैन शब्द में से जैसे जैनत्व की गंजती ध्वनि ध्वनित होती है वैसे हो अवन्तिका शब्द से भी फलित होता है। इस विषय को जानने से पहले हम इस नगरी के प्राचीन इतिहास पर दृष्टिपात करें तो भो यह सिद्ध हो जावेगा कि यह नगरी जैन धर्म का केन्द्र थी। भगवान महावीर के समय में इस नगरी का स्वामी राजा चण्डप्रद्योतन था। जो कि जैन धर्मावलम्बी था। उन दिन वित्तभय पत्तन में १० मुकुटबद्ध राजाओं का स्वामी उदायन राजा राज्य करता था। वहां उस राजा के राजमहल में कुमार नंदी देव द्वारा निर्मित जीवित स्वामी (महावीर स्वामी) की चन्दन काष्ट की प्रतिमा विराजमान थी। उस राजा की दासी सुवर्ण गुलिका के प्रेम में पागल बनकर चण्डप्रद्योतन राजा ने जीवित स्वामी की प्रतिमा सहित दासी का अपहरण किया था। वह जीवित स्वामी की प्रतिमा उज्जैन में ही थी। जीवितस्वामी की प्रतिमा के दर्शन वंदन के लिये यहाँ अनेक लोग आते थे। कुछ समय के बाद सम्राट अशोक का पुत्र कुणाल उज्जैन का सूबेदार था। कुणाल के बाद उसका पुत्र सम्प्रति यहाँ का सम्राट बना उसके समय में जैनाचार्य आर्यसुहस्ति सुरिजीम उज्जैन में जीवित स्वामी की प्रतिमा के दर्शनार्थ पधारे थे। उन्होंने सम्प्रत्ति को जैनधर्मी बनाया था। सम्राट सम्प्रत्ति ने जैन धर्म का बहुत विकास किया था इस बात की गवाही इतिहास भी देता है। ___आचार्य श्रीचंडरुद्राचार्य......."आचार्य श्रीभद्रगुप्तसूरिजी... आचार्य श्रीआर्यर क्षित सूरिजी....... आचार्य श्रीआर्य आषाठ आदि आचार्य देवों ने उज्जैन नगरी में विचरण करके जिनेश्वर देव की वाणी घर घर में प्रवाहित की थी। [२] For Private and Personal Use Only
SR No.020739
Book TitleSiddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitratnasagar, Chandraratnasagar
PublisherRatnasagar Prakashan Nidhi
Publication Year1989
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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