SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ८१ ] गोत्र की व्यवस्था इस प्रकार है । १ -- संताण कमेणा गयजीवाऽऽयरणस्स गोदमिदि संगणा । उच्च नीचं चरणं, उच्चं नचिं हवे गोदं ॥ १३ ॥ ( आ० नेमिचन्द्र कृत गोम्मट सार जीव कांड गा० १३ ) २-यस्योदयात् लोक पूजितेषु कुलेषु जन्म तदुच्चै गोत्रम् | यदुदयात् गर्हितेषु कुलेषु जन्म तनीचैर्गोत्रम् ॥ ( आ० पूज्यपाद कृत सर्वार्थ सिद्धि अ० ८ सूत्र १२ टीका ) ३- दीक्षायोग्य साध्वाचाराणां साध्वाचारेर कृत सम्बन्धाना मार्य प्रत्ययाभिधान व्यवहार निबन्धनानां पुरुषाणां संतानः उच्चै गोत्रम् ॥ तद्विपरीतं नीचे गोत्रम् ( आ. भूतबलि कृत घट खंडागत ४ वेदनाखंड ५ वा पर्याड अधिकार का सूत्र १२९ की आ० वीरसेन कृत धवला टीका ) ४-नीच गोत्र का उदय पांचवे गुण स्थानक तक है देसे तदीय कसाया, तिरिया उज्जोय गीच तिरियगंदी हे आहार दुगं, थित तियं उदय वोच्छिणा ॥ २६७ ॥ देसे तदीय कलाया, नीचे एमेव मनुस सामराणे पजते वि य इत्थीवेदा पज्जत परिहीणा ॥ ३००॥ ( गोम्मट सार - कश्मकांड ) इन पाठों से शूद्रों का मोक्ष ही नहीं वरन् शूद्रों की दीक्षा का भी निषेध है । जैन -- [--यह दिगम्बरसम्मत गोत्रव्यवस्था स्पष्ट नहीं है देखिये १- गोम्मटसार में उच्चं चरणं उच्चं गोदं हवे, नीचं चरणं नीचं गोदं हवे । उच्च श्राचरण से उच्च गोत्र व नीच आचरण से नीच गोत्र माना 1 For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy