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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ७० ] दिगम्बर- हमारे पास जिनोक्त असली बाणी तो है नहीं, सब छदमस्थ श्राचार्य कृत ग्रन्थ ही हैं । इसके लीये हमारे पं० चम्पालालजी और पं० लालारामजी शास्त्री लिखते हैं किवर्तमान काल में जो ग्रन्थ हैं सो सब मूलरूप इस पंचम काल के होने वाले आचार्यों के बनाये हैं । इत्यादि । 1 ( चर्चा सागर चर्चा - २५० पृ० ५०३ ) अर्थात् उपलब्ध सब दिगम्बरशास्त्र तीर्थकरो ने नहीं किन्तु श्राचार्यों ने बनाये हैं, मगर इन ग्रंथो में सीर्फ नग्न आदि के बारे में जोर दिया है, सब बातों में भी वैसा ही करना जरूरी था, मान ऊपरोक्त अपवाद वगैरह सब बातो का सुधार करना लाजमी था । न मालूम उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया ? फल स्वरूप हमारे आजकल के नये विद्वान तो उन ग्रन्थों को भी उड़ाकर नये ग्रन्थ बनाने को तैयार हुए है । ता० १८-२-११३८ के संघ अधिवेशन में पाँच वां प्रस्ताव भी हो चुका है कि "भा० दिगम्बर जैन संघ का यह अधिवेशन प्रस्ताव करता है कि समाज में फैली हुई दण्ड व्यवस्था की वर्तमान अव्यवस्था को दूर करने के लिये निम्नलिखित ( ७ ) विद्वानों की एक समीति कायम की जाय जो कि शास्त्रीय प्रमाणों के आधार पर इस व्यवस्था को दूर करने के लिये समाज के लिये उपयोगी दंड व्यवस्था का रूप निश्चित करे" इत्यादि । माने पुराने दिगम्बरीय ग्रन्थ श्रप्रमाणिक है । जैन -- जहाँ कृत्रिमता है वहाँ रद्दोबदल चली जाती है, "विवेक पतितानां तु भवति विनिपातः शतमुखः” इस न्याय से For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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