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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [५६ ] मुनि आचार--अधिकार दिगम्बर-श्वेताम्बर श्रागम में जिक्र है कि गणधर गौतम स्वामी ने स्कंदक परिव्राजक का सत्कार किया था यह क्या ? जैन महापुरुष द्रव्य क्षेत्र काल और भाव को सोचकर अपनी प्रवृति करते हैं । श्रा० कुन्द कुन्द ही प्रवचनसार में-"समणो तेणिह वट्टदु कालं खत्तं वियाणित्ता ॥ २१ ॥ देसं कालं जाणित्ता . ३० ॥ इत्यादि प्राज्ञा देते हैं। दिगम्बर शास्त्रों में दृष्टान्त भी मिलते हैं कि भ० श्री ऋषभदेवजी ने भरत चक्रवर्ती को स्वप्न का फल कहा, मरिचि का भावष्य कहा, भ० श्री नेमिनाथ जी ने बलभद्र जी को द्वारिका भंग का निमित्त बताया, प्रा० कुन्द कुन्द के शिष्यों ने रात होने पर भी देवो से वार्तालाप किया, इत्यादि । इसी प्रकार श्री गौतम स्वामी ने भी लाभा लाभ को सोच कर ऐसा किया है । वस्तुतः परम ज्ञानियों की प्रवृत्ति फल प्रधान होती है। दिगम्बर--श्वेताम्बर शास्त्र में उल्लेख है कि भगवान मुनि सुव्रत स्वामी ने घोड़े को गणधर बनाया था । जैन-यह झूठी बात है, श्वेताम्बर में ऐसा नहीं लिखा है। हांभ० ने घोडा को सर्व समक्ष प्रति बोध दिया था, मगर उनके गणधर तो "मल्लीकुमार" वगैरह ही थे। दिगम्बर-दिगम्बर मुनि एक ही घर से पर्याप्त आहार लेते हैं, ऐसा सब मुनियों को करना चाहिये। जैन--यदि “गोचरी" ही करना है तो जैन मुनि के लिये एक ही घरका एकान्त विधान नहीं होना चाहिये । एक घर के For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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