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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ५४ ] शरीर वस्त्र वाला होता है । अात्मा से वस्त्र का क्या सम्बन्ध है ? वह तो नग्न ही है। नयत्या त्मान मात्मैव, जन्म निर्वाण मेव च ॥ ७५ ॥ आत्मा ही आत्मा को संसार में फिराता है और मोक्ष में ले जाता है माने-"नग्नत्व से मोक्ष है" यह बात कहने मात्र है। लिङ्ग देहाश्रितं दृष्टं, देह एवात्मनो भवः ॥ न मुच्यन्ते भवात्तस्मात्ते ये लिंग कृताग्रहाः ।। ८७ ॥ जातिदेहाश्रिता दृष्टा ॥ ८८॥ ब्राह्मण पुरुष या नंगा ही मोक्ष में जा सकता है । इत्यादि लिंग के आग्रह से संसार बढ़ता है । जाति लिंग विकल्पेन, येषां च समयाग्रहः ॥ ते न प्राप्नुवन्त्येव, परमं पदमात्मानः॥८६॥ मैं ब्राह्मण हूँ मैं नग्न साधु हूँ ऐसा आग्रह ही मोक्ष का बाधक है (आ पूज्यपाद कृत समाधि शतक) संघो को वि न तारइ, कट्ठो मूलो तहेव निपिच्छो । अप्पा तारइ तम्हा, अप्पा ओ झायव्यो । (भा० अमृत चन्द्र कृत श्रावकाचार) पिच्छे ण हु सम्मत्तं, करगहिए चमर मोरडंबरओ समभावे जिणदिटुं, रागाइ दोस चत्तण ॥ २८ ॥ (बाढसी) केकीपिच्छः श्वेतवासो, द्रावीडो यापनीयकः । निष्पिच्छश्चेति पंचैते, जैनाभासाः प्रकीर्तिताः ।। (दि० भा० इन्द्र नन्दी कृत नीतिसार एलो..) For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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