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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ४० ] १० तपः पर्याय शरीर सहकारि भूतमन्न पान संयम शौच ज्ञानोपकरण तृण मय प्रावरणादिकं किमपि गृह्णन्ति तथापि ममत्वं न करोति । अन्नोपकरण, पानोपकरण, संयमोपकरण, शौचोपकरण ज्ञानोपकरण और तृणज वस्त्र वगैरह दिगम्बर मुनि के उपकरण है। वे इनमें ममता न करें। (ब्रह्म देव कृत परमारम प्रकाश गा० २१६ को टीका पृष्ट २१२) भरहे दुसम समये सद्य कम मोल्लिऊण जो मूढो । परिवट्ठह दिगविरो, सो समणो संघ बाहिरो॥१॥ पासत्थाणं सेवी, पासत्थो पंचचेल परिहाणो । विवरीयठपवादी, अबंदणिज्जो जइ होई ॥ दि० भद्रबाहु संहिता खं० ३ ० ७ गा० ) ११ कोऽपवाद वेशः ? कलौ किल म्लेच्छादयो नग्नं दृष्टवा उपद्रवं यतीनां कुर्वन्ति, नेन मण्डपदुर्ग श्री वसन्त कीर्ति स्वामिना चर्चादि वेलायां तट्टी सादरा दिकेन शरीर माच्छाध चर्यादिकं कृत्वा पुनस्तन्मुंचति, इत्युपदेशःकृतः संयमिना मित्यपवादवेषः। __ तथा नृपादि वर्गोत्पन्न परम वैराग्यवान् लिंग शुद्धि रहितः उत्पन्न मेहनपुट दोष लज्जावान् वा शीताद्यसहिप्णुर्वा तथा करोति सोप्यपवादलिगः प्रोच्यते ।। ( भा. कुन्द कुम्द कृत दर्शन प्राभुत गा० २४ की उभय भाषा चक्रवर्ति दि. कलिकाल सर्वज्ञ मा. श्रुतसागर कृत टीका पृ. २।। पं० पामेष्टीदास कृत चर्चा सागर सभीक्षा प्रस्तावना।) १२-"णिक्खेवो" यत् किंचित् वस्तु पुस्तक कमण्डलु मुख्य क्यचिनिक्षिप्यते मुच्यत ध्रियते तान्नक्षेप स्थानं दृष्टवा तशवै For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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