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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ २४ ] (पंचम्पालालजी कृत चर्चासागर पृ. ३२५ पं० परमेष्टीदास कृत, धर्म समीक्षा पृ. २२४) ५--लिंग जह जादरूप मिदि भाणदं ॥ २४ ॥ (मा. कुन्द कुन्द कृत प्रवचनसार) सारांश यह है कि मुनि पांचों प्रकार के वस्त्र न पहिने ! नंगा. पन ही मुनि लिंग हैं। जैन--मैं पहिले से ही बता चुका हूं कि श्रा० कुन्द कुन्द ने शुरू २ में पाँच प्रकार के वस्त्रों का निषेध किया, इससे तो निम्न बातें विना संशय निर्णीत होती जाती हैं। १-श्रा० कुन्द कुन्द के समय पर्यंत जैन निर्गन्थ पाँच प्रकार के वस्त्र पहिनते हैं। २-उस समय तक के शास्त्रों में मुनित्रों के लिये पाँच जाति के वस्त्रों की आज्ञा है। ३-वस्त्र मात्र का निषेध न करके पाँच प्रकार का ही निषेध क्रिया इससे भी पाँच ही प्रकार के वस्त्र उस समय पर्यन्त ग्रहण किये जाते थे, यह भी निर्विवाद हो जाता है। ४-दिगम्बर साधु पाँच जाति से भिन्न वस्त्र पहने तो दोष नहीं है, सिर्फ पाँच का ही त्याग होना चाहिये। क्योंकि पाँच जाति में ही परिग्रह दोष है । छेटे प्रकार के वस्त्र में वह दोष नहीं है । ___५-दिगम्बर मुनि तृणज चटाई को ग्राह्य मानते हैं यानी लेते हैं । यद्यपि प्रा० देव सेन ने छठी तृणज जाति का निषेध किया किन्तु दिगम्बर मुनि उनकी एक भी नहीं सुनते । माने पाँच के अलावा छठी जाति का इस्तेमाल करते हैं और "खिदि सयण" के बजाय पट्ट पर सोते हैं। ६-सिर्फ पाँच जाति के वस्त्र के खिलाफ में ही यह रूलिंग For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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