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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वास्तवमें देवद्वारा चीर फाड़ पूर्वक सीधा उदमें छो गर्भ स्थापन हुआ है। इसमें असतीत्व को अवकाश ही नहीं है। क्या दूसरे के बच्चे को अपनाने से या उनका तबादला करनेसे सतीत्व नहीं रहता है ? गर्भपरावर्तनमें सतीत्वका विनाश हो ऐसी एक भी बात बनती नहीं है, अतः 'त्रिशला रानी' सती ही है। देवकी के छ छै गर्भों का परावर्तन हुआ है किन्तु देवकीरानी सती ही मानी जाती हैं। दिगम्बर-इस हालतमें भगवान महावीर स्वामी कीसके पुत्र माने जाय? जैन-गर्भपरावर्तन होने पर या गोद लेने पर बच्चा दोनांका माना जाता है । इसके दृष्टांत भी मीलते हैं। जैसे कि-- (१) इन्द्रने हरिणगमेषी द्वारा देवकी रानी के ६ पुत्रों का भहिलपुरकी वणिक पुत्री अलकाके ६ पुत्रो से परावर्तन करवाया ये लडके मुनिजी बनकर मोक्षमें भी गये हैं इन सबके दो दो मातापिता माने जाते हैं । (हरिवंश पुराण, भाव प्रामृत गा० ४६ की टीका. पृ० १७५) (२) कृष्ण वासुदेवका भी नंद और यशोदाके वहां परावर्तन हुआ है, अतः वे भी नंदकेलाला, नंददुलारे, यशोदानंदन, वसुदेवपुत्र, देवकीनंदन, यादवराय, इत्यादि नामसे पुकारे जाते हैं। इसी प्रकार भगवान् महावीर स्वामी भी ऋषभदत्त व देवानंदाके और सिद्धार्थराजा व त्रिशला रानीके पुत्र हैं भगवान महावीरस्वामीने भगवतीजी सूत्र में ऋषभदत्त और देवानंदाकी जीवनी आलेखित की है और वहीं देवानंदा ब्राह्मणी को अपनी माताके रूपमें जाहिर की है। वाकई में यह घटना कल्पित होती तो इसे आगममें स्थान नहीं मीलता । और इस घटना में कोई सांप्रदायिक वस्तु तो है नहीं। दिगम्बर-माननीय पूज्यों की ऐसी २ घटनायें सुरक्षित रहे वह ठीक नहीं है, अतः इस चरित्रांशको आगममें दाखिल नहीं करना चाहिये था, इसे तो साफ उडा देना था। For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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