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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३१ इसी प्रकार देबद्वारा गर्भ परावर्तन होना तो संभवित है। मगर इस विषय में ओर भी कई बाते विचारणीय है। जैन-इस गर्भ परावर्तन से तत्कालीन भारतीय विज्ञान कितना विकसित था उसका पत्ता चलता है। गर्भ परावर्तन यह कल्पित गप्प नहीं है आजके डॉक्टर भी आपरेशन द्वारा गर्भ परावर्तन करके आलम को आश्चर्य चकित करते हैं। थोडे ही वर्ष पहिले की बात है कि____एक अमेरिकन डोक्टरने एक भाटिया नातिकी गर्भवती जनानाके पेटका ऑपरेशन किया था। शुरूमें डॉक्टरने गर्भवतीबकरी के पेटको चीरकर उसके बच्चेको बीजलीके सन्दूक में रख दिया और जनाना का पेट चीर कर उसके बच्चेको बकरीके गर्भस्थान में रख दिया, बादमें उस जनाना के पेटका आपरेशन किया। ऑपरेशन खतम होते ही उस बच्चेको जनानाके पेटमें और बकरीके बच्चेको बकरी के पेट में पुनः स्थापित कर दिये। दोनोंको टांके लगा दिये और दोनोंको जिन्दे रक्खे। समय होने पर उन दोनोंने अपने बच्चेको जन्म दिया । ___ इस प्रकार नडियाद, मोरत, वगेरह स्थानों में कई करामती आपरेशन होते रहते हैं। ____ आजका यह विज्ञान भी गर्भपरावर्तन विषयक सब शंकाओ को रफे दफे करा देता है। यह भी मार्के की बात है कि-तीसरे महिने का गर्भ पीडरूप बनकर उठाने योग्य होता है, अतः हरिणगमेषीने भगवान् को ८३ वे दिन त्रिसला के उदर में रखा है। और त्रिसलारानी के उदर में जो कन्या गर्भ था उसे उठाकर देवानंदा के उदरमें. ला रक्खा है।* * जुदा जुदा प्राणीओमा गर्भ विकास काळ जुदो जुदो होय छे. देडकामा पंदर दिवसनो गर्भ विकास काळ होय छे अने देडकानी मादा पाणीमा इंडां मुके त्यारथीज पंदर दीवसमां ते इंडानी अंदर गर्भनो विकास थाय छे अने त्यारे नानी माउली जेवू हेडपोल जन्मे छे गीनीपीगमा एकवीस दीवसनो गर्भ विकास काळ छे. ससला अने खीसकोली पात्रीस दीवस, बिलाडीमां पंचावन दीवम, कुतरामां बासठ दीवस, सिंहमां प्रण महिना, अक्करमा चार महिना, For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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