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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२५ दिगम्बर भी मानते हैं । फिर भी 'मल्लीकुमारी' तीर्थकरी हुई अतः वह 'अघट घटना' है । दिगम्बर-क्या दिगम्बर शास्त्र भी स्त्रीके तीर्थंकर पद की साफ २ मना करते हैं ? जैन - हां जी, दिगम्बर शास्त्र भी साधारणतया स्त्रीको "तीर्थकर नामकर्म" का उदय मानते नही हैं। देखिए प्रमाणमसिणिएत्थी सहिदा, तित्थयरा हार पुरिस - संदूणा । " मनुषीणी को तीर्थकर आहारक द्वय, पुरुषवेद और नपुंसक वेदका कभी भी उदय होता नहीं है । सारांश - पर्याप्त मनुषीणी को कभी भी १ - अपर्याप्त नामकर्म का उदय नहीं है, २-तेरहवे गुणस्थान में जाने पर तीर्थकर नाम प्रकृति का उदय नहीं है । ३-४- प्रमत्तसंयत गुणस्थान में जाने पर भी आहार द्विकका उदय नहीं है । ५- नौंवे गुणस्थान तक पुरुष वेद का उदय नहीं और ६- नावे गुणस्थान तक नपुंसक वेद का उदय नहीं है। पर्याप्त स्त्रीको इन ६ प्रकृति को छोड़कर शेष ९६ प्रकृति का उदय होता है । (दिगम्बर आचार्य नेमिचन्दजी कृत गोम्मटसार कर्मकांड गा० ३०१ ) साफ निरूपण है कि स्त्री मोक्ष में जाय मगर तीर्थकर न बने । दिगम्बर - दिगम्बर इसे इस रूपमें क्यों मानते नहीं है ? | जैन -उन्होने दिगम्बरत्व को पुष्ट करनेके लीये वस्त्र की मना की, साथ साथ में स्त्री मोक्षकी भी मना की। इस परिस्थिति में वे 'तीर्थकरी' को व इस आश्चर्य को तो माने ही कैसे ? । फिर भी गोम्मटसार में उपरोक्त वस्तु सुरक्षित है यह भी खुशी की बात है। दिगम्बर तीर्थकरीके स्त्री अंगोपांग दीख पड़ते होंगे। जैन- वास्तव में तीर्थंकरी सवत्र ही होती हैं फिर भी जैसे नग्न तीर्थकर की नग्नता दीख पड़ती नहीं है वैसे तीर्थकरीके अंगोपांग भी दीख पड़ते नहीं है । दिगम्बर- यदि मल्लिनाथजी तीर्थकरी थे, तो आपके लीये For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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