SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ यहां (८) ६३ जीव ही ६३ शलाका पुरुष होना चाहिये, किन्तु शान्तिनाथ कुंथुनाथ व अरनाथ अंतिम भवमें चक्रवर्ति हुए और तीर्थकर भी हुए, श्री महावीर स्वामी एक भवमें वासुदेव बने और अंतिम भवमें तीर्थकर भी बने, इस प्रकार ५९ जीव ६३ शलाका पुरुष हुए, यह आठवां आश्चर्य है । जैन - प‍ - एक जीव एक भव में या अनेक भव में अनेक पदवीयों को प्राप्त करे, उसकी मना तो है नहीं । दिगम्बर शास्त्रों में श्री शांतिनाथ कुंथुनाथ और अरनाथजी 'चक्रवर्ति' और 'तीर्थंकर' ही नहीं किन्तु 'कामदेव भी माने गये हैं । इस हालत में जीवो की संख्या कम रहे यह स्वाभाविक है । तीर्थकर के लोये यह भी चारी हो हो या गृहस्थी हो, या चक्रवत्ति ही हो। अत एव हो सकते हैं । धर्म चक्रवर्ति होनेवाला पुरुष राष्ट्रपति भी हो सके, यह तो सहज बात है । फिर तो ६३ जीव ही ६३ शलाका पुरुष बनें यह ना मुमकीन ख्याल है । कोई कानून नहीं है कि वे ब्रह्मएवं कुमार ही हो, राजा ही हो, वे चक्रवर्त्ति होकर भी तीर्थकर दिगम्बर दिगम्बर मानते हैं कि - (९) नारद और रुद्र नहीं होना चाहिये, किन्तु ९ नारद और ११ रुद्र हुए। यह नौवां आश्चर्य है । जैन - दिगम्बर समाज एक तरफ तो १६१ पुण्य पुरुषो में ९ नारद और ११ रुद्रको पुण्य पुरुष बताते हैं और दूसरी तरफ उनको अघटन घटना में करार दे देती है। यह क्यों ? पुण्य पुरुष का होना बजा माना जाता है फिर भी उसे बेजा मानना और उस पर आश्चर्य की महोर लगाना, यह तो दूना आश्चर्य है ||९|| दिगम्बर - दिगम्बर मानते हैं कि (१०) जैन धर्मका लोपक व मुनि भिक्षा पर भी कर (टेक्स) डालनेवाले कल्की न होना चाहिये, किन्तु हजार२ वर्ष पर ११ 'कल्की' व ठीक बीच२ में ११ 'उपकल्की' होंगे (त्रिलोक सार गा० ८५० से ८५७) यह दसवाँ आश्चर्य है । For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy