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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ૨ अर्थ होते थे, उनके बाद आर्य रक्षितसूरि से जिनागमका पृथक्त्व अनुयोग हुआ, माने-धर्मकथा या चरणकरण ऐसा एकैक ही अर्थ रहा। आवश्यक नियुक्ति गा० ७६२-७६३ में भी यही सूचन है । तात्पर्य यह है कि एक अनुयोगवाला अर्थ हो शेष रहने के कारण किसी २ स्थानमें अर्थभ्रम दीख पडे, तो वह भी संभावित है | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस अर्थ भ्रमको दूर करनेके लीये अपनेको उस कालकी अर्थशैली तक पहुंच जाना चाहिये और ग्रन्थस्रष्टा के असली आशय को प्राप्त करना चाहिये । इस हालत में " कवोय" वगेरह का सहसा प्रचलित सादा एवं ऐकान्तिक अर्थ कर दीया जाय तो उन ग्रन्थस्रष्टा व साहित्य से द्रोह किया ही माना जायगा । (२) प्राकृत और संस्कृत भाषा में वनस्पतियोंके कई ऐसे नाम हैं कि जो आम तोरसे विभिन्न प्राणिओंके भी परिचायक है । जैसा कि - बिल्ली ( गा० १९) एरावण (२१) गयमारिणी (२२) पंचगुलि (२६) गोवाली (२९) बिल्ली (३७) मंडुक्की (३८) लोहिणी, अस्सकण्णि, सीहकन्नी सिंउढि मुलुंडी (४३) विराली : (४५) चंडी (४६) भंगी (४७) ( पन्नवणा सूत्र पद १ सूत्र - २३, २४) अस्सकण्णी, सीहकण्णी, सीउंढी, मूसंदी । ( जीवाभिगम सूत्र प्रति० १ सू० ११ पृ० ३७) रावण- तंदुकफल, कच्छप- नंदित्रीणि बिस्वी-2 - कंडूरीसाग, ( जै० स० ० ४ अं० ७) ऐरावण - लकूचफल, मंडुकी - (गु०) कोली, पतंग - ( गु० ) महुडा, तापसप्रिया - अंगूर दाख, दरखत, गोजिह्वा - गोभी, मांसल - तरबूज, चतुष्पदी भींडा | - मार्जारि - कस्तूरी मृगनाभि- मुश्क, हस्ति तगर ( पृ० २८), अंडा - आंबला ( पृ० १०६), मर्कटी वानरी - कौंच ( ३४३) वनशुकरीमुंडी (४११) कुकडवेल - गुजराती औषधि (४५६) लालमुर्गा - हीन्दी औषधि (५०१) चतुष्पद-भींडी (८८९) मांसफल - तरबूज ( पृ०९०३) ( शालिग्राम निघंटु भूषण - ६) For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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