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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४ २४ तीर्थकरो में १९ राजा थे ५ राजकुमार थे, २२ विवाहित थे २ मल्लिनाथ और नेमिनाथ आजीवन ब्रह्मचारी थे । यह विश्लेषण सप्रमाण है विश्वस्य है । दिगम्बर - श्वेताम्बर मानते हैं कि - १९ वे मल्लीनाथ भगवान् मी तीर्थंकर थे । जैन - वे इस बातको आश्चर्यघटना रूप मानते हैं । दिगम्बर - दिगम्बर पंडित हेमराजजी लीखते हैं कि भगवान् मुनिसुव्रतस्वामी के गणधर घुड़ा था, ऐसा श्वेताम्बर मानते हैं । जैन - यह जूठ वात है, श्वेताम्बर ऐसा मानते ही नहीं है । उनके गणधर मल्लीकुमार वगेरह मनुष्य ही थे । सही प्रकार भगवान् मल्लीनाथके शरीका वर्ण भगवान् नेमिनाथजीका छदमस्थदीक्षाकाल इत्यादि विषयों पर श्वेताम्बर और दिगम्बरो में कुछ २ मतभेद पाया जाता है, जो वास्तव में उनके साहित्य की प्राचीनता और अर्वाचीनता के कारण ही है। दिगम्बर - श्वेताम्बर शास्त्र भगवान् महावीर के २७ भव बता से हैं, मगर वह बात ठीक नहीं है । जैन - यह निर्विवाद है कि श्वेताम्बर आगम साहित्य समृद्ध है, प्राचीन है, मौलिक है, खानदान है। दिगम्बर साहित्य अल्प है पश्चात् कालीन है पराश्रित है इसका निर्माण श्वेताम्बर साहिस्य के आधार पर हुआ है और हो रहा है । देखिए- (१) एक दिगम्बर विद्वान साफ २ लीखते हैं कि-" इसमें संदेह नहीं कि श्री महावीर भगवान् के ३० वर्ष के विहारका विस्तारपूर्वक वर्णन दिगम्बर शास्त्रा में नहीं मिलता है । यदि श्वेताम्बरो के शास्त्रों में मिलता हो तो संग्रह करनेकी जरूरत है । केवल यह बात ध्यान में रखने की होगी कि वह महावीर चर्या ऐली न तैयार हो जो सर्वज्ञ वीतरागत्व विशेषणों को खंडन करके उनको केवल एक तपस्वी महात्मा के रूपमें प्रमाणित करे । अरिहंत के स्वरूप को स्थिर रखते हुए उनके उपदेशो का संग्रह किसी भी साहित्य से करनेमें हानि नहीं है 55 (दि० जैनमित्र व० ३८ अं. ४० पृ० ६४१ को लेख- श्री भगवान् महावीर की वाणी साक्षरीथी क्या ? ) For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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