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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तीर्थकर का जन्म तो जब होगा तब होगा मगर उनके माता पिता उनके आनेके बाद ही नहीं किन्तु अप. ने जन्म से ही आजीवन तक निहार ही न करे, यह कैसी विचित्र मान्यता है ? अस्तु । ऐसी मान्यता तो सिर्फ सम्प्रदायमें ही विश्वास योग्य होती है, वह उतनी ही सीमावाली होती है। दिगम्बर - श्वेताम्बर मानते हैं कि तीर्थकर भगवान् गर्भमें आये तब उनकी माता १४ स्वप्न देखते हैं - १ गय २ वसह ३ सीह ४ अभिसेय५ दाम ६ससि ७दिणयरं ८ झयं ९कुम्भं । १० पउमसर ११ सागर १२ विमाण भवण १३ रयणुच्चय १४ सिहिं च ॥१॥ ( कल्पसूत्र ) तीन नारक और वैमानिक देवलोक से आया हुआ जीव तीर्थ कर हो सकता है। जैसा किहोज्जदु णिव्वुदि गमणं, चउत्थी खिदि णिगतस्स जीवस्स । णियमा णित्थयरत्तं, णत्थि त्ति जिणेहिं पण्णत्तं ॥११८॥ तेण परं पुढवीसु, भयणिज्जा उवरिरमा हुणेरहया णियमा अणंतर भवे, तित्थयरस्स उप्पत्ती ॥११९॥ पहेली, दूसरी व तिसरी नरकसे निकाला हुआ जीव तीर्थकर बन सकता है, चौथी वगेरह नरक से निकला हुआ जीव तीर्थकर होता नहीं है [११८-११९] मनुष्य, तीर्यच, भुवमपति, व्यंतर और ज्योतिष से आया हुआ जीव तीर्थकर न होवे (गा. १२९, १३८) विमान अवेयक अनुदिशा के विमान और सर्वार्थसिद्ध विमानसे निकला हुआ जीव तीर्थकर चक्रवर्ती और राम होवे (गा. १३७ से १४१) (आ० वट्टेरक कृत मूलाचार, परिच्छेद् १२) इस प्रकार आगति के प्रश्न को मद्दे नजर रखकर श्वेताम्बर मानते है कि- भगवान् वैमानिक देवलोक से व्यवन पाये तो उनकी माता बारहवे स्वप्नमें "विमान" को For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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