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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४१ दिगम्बर- दिगम्बर शास्त्रोंसे केवली की साक्षरी वाणीके प्रमाण दीजिए जैन - दिगम्बर सम्मत शास्त्र भी केवली की वाणी को साक्षरी मानते हैं। देखिये प्रमाण (१) केवलीओको सुस्वर और दुःस्वर दोनों प्रकृतियाँ उदय में होती हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( गोम्मटसार कर्मकांड गा० २७१ ) (२) तीर्थंकर भगवान् पर्याप्ता हैं, 'भाषापर्याप्ति' वाले हैं । ( बोधप्राभृत गा० ३४-३८, गोम्मटसार कर्म० गा० २७२,५९५, ५९६, ५९७ ) (३) केवली को १० प्राण हैं, माने भाषाप्राण भी है । ( बोधप्राभृत गा० ३५, ३८) (४) केवली को १ औदारिक काययोग, २ औदारिक मिश्रकाययोग, ३ कार्मणकाययोग, ४ सत्य मनोयोग, ५ असत्या मृषा मनोयोग, ६ सत्य वचनयोग, ७ असत्यामृषा वचनयोग ये ७ योग होते हैं (क० ४२८ ) (५) छप्पिय पञ्जत्तिओ, बोधव्वा होंति सष्णिकायाणं । एदा हि अणिवत्ता, ते दु अपजया होंति || ६ || (मूलाचार परि• १२ पर्याप्ति श्लो० ६ ) (६) सार्वा मागधीया भाषा ||३९|| अर्थ -: - भगवान् की दिव्य ध्वनि अर्धमागधी भाषा में होती है । भगवान् की दिव्य ध्वनि एक योजन तक सुनाई पड़ती है परन्तु मागध जातिके देव उसे समवसरण के अंत तक पहुँचाते रहते हैं ||३९|| ( अन्य - प्रति लो० ४२ ) ध्वनिरपि योजनमेकं प्रजायते श्रोतृहृदयहारी गभीरः ||५५ || ( ९ - १०) तस्स पडिहारा || ( अन्य प्रति हो० ५८ ) (आ० पूज्यपादकृत नंदीश्वरभक्ति पं० लालारामजी जैनशास्त्रीकृत भर्थ पृ० १४७, १५२ ) ( ७ - ८ ) सार्वार्ध मागधीया भाषा । ( बोधप्राभृत गा० ३२ टीका, दर्शनप्राभृत गा० ३५ टीका) For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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