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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इन्द्रादिक देव बहुत शीघ्र आये। उन्होंने भगवानके शरीरकी पूजा की और फिर देवदारु लालचन्दन, कालागुरु [ कृष्णागुरु ] और सुगंधित गोशीर्ष नामके चन्दनसे अग्निकुमार देवोंके इन्द्र के मुकुटसे निकली हुई अग्निसे तथा सुगन्धित धूप और उत्तम मालाओंसे भगवान के शरीर का अग्नि संस्कार किया । फिर देवोंने गण. धरोंकी पूजा की। (पं. लालारामजी जैनशास्त्री अनुवादित "दशभक्त्यादि संग्रह, निर्वाण भक्ति पृ. १२६) (३) केवली भगवान् समुद्घात करते हैं जब सव जीव प्रदेशको अलग २ करके लोकाकाशको भर देते हैं। फिर भी उनका शरीर विखरता नहीं है, तो क्या कारण है कि निर्वाण होते ही उनका शरीर विखर जाय? (४) मोक्ष जानेके बाद भी तो भगवान का परमौदारिक शरीर रह जाता है, तब पांडेजीकी बुद्धिमें क्षपकश्रेणी चढते ही कैसे उड़ जाता होगा सो समझ में नहीं आता। (पं. परमेष्ठीदासजी जैन न्यायतीर्थकृत-गर्चासागर समीक्षा. पृ० १०७ ) (५) तीर्थकरके शरीरका अग्नि संस्कार होता है राख होती है वहाँ निर्वाण तीर्थ बनता है। . ( नन्दीश्वर भक्ति लो० ३१-३२) .इन प्रमाणांसे स्पष्ट है कि केवली भगवानका शरीर औदारिक है और निर्वाण के बाद नहीं विखरता है। दिगम्बर-हमारे विद्वान् कहते हैं कि जहाँ केवली भगवान का शरीर आकाश में कर्पूरके समान उड़ जाता है, जहाँ उनके केश और नख गिरते हैं, वहाँ तीर्थ स्थापना होती है । श्वेताम्बर तो भगवानके शरीरका अग्नि संस्कार मानते हैं साथ २ उनकी दाढ़ वगैरह को देव ले जाते हैं ऐसाभी मानते हैं दिगम्बर इस में सहमत नहीं हैं। जैन-केश और नख जो कि शरीरके ऊपरकी वस्तु हैं उनके आधार पर तीर्थ मानना, और सात धातुओंका उड़ना मानना कहीं संभव हो सकता है ? मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि किसी तेरहपंथी विद्वान्ने हिन्दी भाषामें कल्पना करके वह लिख दिया होगा। प्राचीन दिगम्बर शास्त्रोमें इन बातों का सबूत मिलना मुश्किल है For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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