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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सारांश यह है कि-केवली भगवान को भूख प्यास वगैरह होते हैं और वे आहार पानी लेते है। दिगम्बर-केवलो भगवान किस कारणसे आहार लेवे ? दिगम्बर शास्त्रमें आहार के त्याग और स्वीकार के लिये निम्न कारण माने हैं। छहि कारणेहिं असणं, आहारतो वि आयरदि धम्म । छहिं चेव कारणेहिं दु, णिज्जुहवंतो वि आचरेदि ॥५९॥ वेणयं वैयावच्चे, किरियाहाणेय संजमट्ठाए । तथापाण धम्मचिन्ता, कुजा एदेहिं आहारं ॥६०॥ आदंके उवसग्गे, तिरिक्खणे बंभचेरगुत्तीओ। पार्णिदया तवहेऊ, सरीरपरिहार वुच्छेदो ॥६१।। टीका-तितिक्षणायां ब्रह्मचर्यगुप्तेः सुष्ठु निर्मलीकरणे, सप्तमधातुक्षयाय आहारव्युच्छेदः ॥६१।। ण बलाउसादु अटुं, ण सरीरस्सुवचयह तेजहूँ । णाण? संजमहूं, झाणटुं चेव भुंजेजो ॥१२॥ (मूलाचार परिछे । ६ पिंडविशुद्धि अधिकार) जैन-केवली भगवान शरीर, संयम, धर्म और शुक्ल ध्यान आदि के कारण आहार लेते हैं, और आहारत्याग भी करते हैं । दिगम्बर-दिगम्बरीय शास्त्रमें तीन आहार व चार आहार के त्यागरूप तपस्या है, जिसके नाम चतुर्थ भक्त छठ्ठ अठ्ठम वशम वगैरह है । देखिये(१) खवणं छह हम दसम खमणं, खमणं च छह अट्ठमयं । खमणं खमणं खमणं, छटुं च गदेस्सिमो छेदो ॥७८।। ( आ• इन्द्रनन्दिकृत छेदपीडम् ) (२) रत्ति गिलाणब्भत्ते चउविह एकम्हि छदुखमणाओ। टीका-रात्रो व्याधियुते चतुर्विधाहारे ॥२९॥ ( दिगम्बरीय छेद शास्त्रम् ) For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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