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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar किया। श्री उत्तराध्यान सूत्र में इस मुनि संघ का विचारभेद पाया जाता है। और बौद्ध त्रिपटको में भी इस सघं का चाउजामो धम्मो" इत्यादि शब्दों से उल्लेख मिलता है। इस संघ की मुनि परम्परा आज भी उपकेश गच्छ कवलागच्छ इत्यादि नामों में प्रख्यात है। २. मंखलीपुत्र गौशाल का मुनि संघ, यह भगवान महावीर के छदमस्थ अवस्था के एक शिष्य का संघ है जो प्रधानतया नग्न ही रहा करता था, इसका प्राचार्य लोहार्य या अन्य कोई था जिन्होंने अपने गुरु की अन्तिम आशा को शिरोधार्य बनाकर अपने गुरुके भी गुरु भगवान महावीर स्वामी के संघ में प्रवेश किया। श्री सूत्र कृतांग और भगवती सूत्र में इस मुनि संघ का विस्तृत वर्णन मिलता है। ___दिल्यादान (१२ । १४२, १४३) अवदान कस्बलता (पल्लव १७ । ११) मजिझम निकाय के चूलसागरोपम सुत्तंत । ।३।१० सन्दक २।३।६ (पृष्ट ३०१, ३०४) महासुकुलदायी सुत्तंत २ । ३ । ७।महासच्चक ।।४।६ (पृष्ट १५४ ) महासीहनाद १२ । २ । २ ( पत्र ४८ ) वगैरह बोद शासो में भी इस मत के विभिन्न उल्लेख हैं। एनसाईकलो पीडिया ओफ रीलिजियन एन्ड एथिक्स वॉल्यूग १ पृ० २५६ में बड़े लेख द्वारा इस मुनि संघ पर अच्छा प्रकाश डाला गया है उसके लेखक ए. एफ. पार होअनल साहब बड़ी छान बीन के बाद बताते हैं कि उसके मत में १ शीतोदक २ बीजकाय ३ प्राधाकर्म और ४ स्त्री सेवन की मना नहीं है (सूत्र कृतांग ) ये अचेलक हैं मुक्ता चार हैं हस्तावलेपन (कर पात्र ) हैं । एकागारीक ( एक घर से प्राधाकर्मी भिक्षा लेने वाले ) हैं ( मज्झिमनिकाय पृ० १४४ व ४८ ) यह मत पुरुषार्थ, पराक्रम का निषेध करता है और नीयति को ही प्रधान मानता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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