SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ २८ ] मंगर भूलना नहीं चाहिये कि नवम गुणस्थान के पहिले या बाद में पर्याप्त पुरुष को स्त्रीवेद और अपर्याप्तयन का उदय कभी भी नहीं होता है 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यह भी ख्याल में रखना चाहिये कि पर्याप्त स्त्री को भी पुरुषवेद, नपुंसक वेद और श्राहार द्विक का उदय कभी नहीं होता है 1 ( कर्म गा० ३०० - १०१ ) और नवम गुण स्थान में वेद का उदय विच्छेद होने के पश्चात् वेदि होते हैं। पुरुष, स्त्री और नपुंसक ये तीनों क्षपक श्रेणी करते हैं । तेरहवें गुण स्थान में पहुँचते हैं किन्तु स्त्री और नपुंसक तीर्थकर नहीं बनते हैं क्योंकि उन दोनों में तीर्थकर नाम की प्रकृति सत्ता से ही नहीं होती है । ( गोम्मट सार कर्मकांड गा० ३५४ ) थी पुरुसादय चड़दे, पुवं ढं खवेदि थी । संदरसुदये पुण्वं, थी खविदं संद मत्थिति ॥ ३८८ ॥ क्षपक श्रेणी में चढ़ते समय पुरुष नपुंसकवेद का स्त्री नपुंसक वेद का और नपुंसक स्त्रीवेद का प्रथम खात्मा करते हैं । ( कर्म्म० गा० ३८८ ) वेदे मे संग || ६॥ वेद है, वहां तक "मैथुन संज्ञा " है । ( गोम्मटसार जीवकाण्ड ग० ६ ) थावर काय पहुदी संढो, सेसा असरणी आदी य । यस्य पढमो, भागोत्ति जिरोहिं खिदिट्ठे ६८४ नपुंसक वेद स्थावर काय मिथ्यादृष्टिम अनिवृत्ति के प्रथम भाग तक होता है और शेष दोनों वेद असंधी पंचेन्द्रिय से अनि For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy