SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ १५२] रराज राजकन्या सा, राजहंसीव सुस्वना । दीक्षा शरनदी शील-पुलिन स्थल शायिनी ॥ १७६ ।। सुंदरी चान निर्वेदा, तां ब्राहमी मन्वदीक्षत । अन्ये चान्याश्च संघिज्ञा, गुरो प्राब्राजिषु स्तदा ।। १७७ ॥ (( भा० जिनसेन कृत भादि पुराण पर्व ) शमिता चक्रवर्तीष्ट-कांतयाऽऽशु सुभद्रया: ब्राहमी ममीये प्रवज्य, भाविसिद्धिश्चिरं तपः ॥ २८८ ॥ कृत्वा विमाने सानुत्तरे, ऽभूत्कल्पे ऽच्युते ऽमरः ।। (-आदि पुराण प-४७) ३-जिनदत्तार्यिकाम्यणे, श्रेष्ठीभार्या च दीक्षिता ॥ २०६॥ . (मा० गुण भन्न कृत उत्तर पुराण पर्व .., देव की पुत्र पूर्वमय ) तथा मीता महादेवी पृथिवी सुन्दरी युताः देव्यः श्रुतवती क्षांति-निकट तपसि स्थिताः ॥ ७१२ ॥ मीताजी अच्युत देवलोक में गई । ७१६ । ___(उत्तर इराण पर्व १८ सीताधिकार ) भ० महावीर स्वामी के माधु आर्यि का प्रावक और श्राविका की संख्या का वर्णन है । इनमें एलक क्षुल्लक का नाम निशान नहीं है। (महावीर संघ ) (उत्तर पुराण प. लो. १००, ३०५) चंदना साध्वी ( उत्त० ५०७४ श्लो० ३७६) सुप्रतागणिनी, गुणवती श्रार्या ( उत्त० ७६ श्लो० १६५, १६७ ) पांचवे पारा की अन्तिम आर्यिका सर्व श्री।। (डलर पर्व. ०४५) ये सब आर्याएँ पांच महाप्रत धारिणी थी, छटे, सातवे गुण For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy