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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१९५ ( मूलाचार, परिच्छेद २, गाथा १२०) वैमानिक जीव वहां स च्यवन पाकर शलाका पुरुष बन सकता है मगर अनुत्तर विमान से प्राया हुश्रा जीव सीर्फ वासुंदव हो सकता नहीं है। आगतिकी कैसी विचित्र घटना है ? (मूलाचार परिच्छेद १२, गाथा १२६, १३८ से १४१) इस प्रकार गति की असाम्यता के अनेक दृष्टांत शास्त्रो में अंकित है, वास्तव में गतिप्राप्ति की समानता नहीं पानी जाती है। अतएव स्त्री सातवे नरक पाने में असमर्थ होने पर भी मोक्षको पा सकती है। दिगम्बर-वासुदेव और प्रति वासुदेव शुद्ध अध्यवसाय के न होने के कारण मोक्ष पाने में असमर्थ हैं. भोगभूमि के युगलिक अशुर अध्यवसाय के अभाव से नरक पाने में असमर्थ हैं, और मत्स्य शक्तिवान होने पर भी गति और शरीरादि भेद के कारण शुद्ध अध्यवसाय की अंतिम सीमा को नहीं पहुँच सकता है अतः मोक्ष पान में असमर्थ है, किन्तु स्त्री मोक्ष पाने में समर्थ है तो. सातवी नरक पाने में असमर्थ क्यों है ? जैन-जैसे वासुदेव आदि में शुद्ध अध्यवसाय का अभाव है, युगलिक में अशुद्ध अध्यवसाय का अभाव है, मत्स्य में मोक्ष के योग्य शुद्ध अध्यवसाय का अभाव है वैसे ही अबला में स्त्री शरीर और मातृत्व होने के कारण सातवें नरक के योग्य अशुद्ध अध्यवसाय का अभाव है। वह चाहे जितनी क्रूर बनें, मगर पुरुष की समता नहीं कर सकती है। वासुदेव मत्स्य वगैरह अशुद्ध अध्ययसाय की आखिरी सीमा तक पहुँच जाते है । अतः वे सातवें नरक तक जाते हैं, किन्तु शुद्ध अध्यवसाय की सीमा तक नहीं जासकत हैं यानी मोक्ष में नहीं जा सकते हैं। वैसे हो स्त्री शुद्ध अध्यवसाय For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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