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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ १०४] पुरुष वेद में स्त्री वेद आदि १५ को छोडकर १०७ प्रकृति का उदय होता है । ( गा० ३२० ) स्त्री वेद में पुरुष वेद आदि १७ को छोडकर १०५ प्रकृति का उदय होता है । नपुंसक वेद में ,१४४ प्रकृति का उदय होता है । ( ३२६ ) उदय त्रिभंगी में भी तीनों वेदवाले को विषम वेदोदय नहीं माना है । ये सब प्रमाण शरीर से विभिन्न वेदोदय की साफ २ मना करते हैं। दिगम्बर-दिगम्बर समाज १ से ९ गुणस्थान तकके पुरुष माने दिगम्बर मुनि को तीनों वेद का उदय मानता है। १-६० बनारसीदासजी लिखते हैं किजो भग देखी भामिनी माने, लिंग देखीं जो पुरुष प्रवानें। जो विनु चिन्ह नपुंसक जोवा, कहि गोरख तीनों घर खोवा। २-दिगम्बर ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी ने भी अपने "स्वतंत्रता" लेख में साफ बताया है कि-दिगम्बर मुनि जो नग्न दशा में हैं, वे # वे गुणस्थानक तक तीनों वेदों को महसूस करते हैं, दिगम्बर मुनि को छठे गुणस्थान मै पुंवंद स्त्रीवद या नपुंवेद का तीव्र उदय होता है । इत्यादि । (जैनमित्र, व• ३६, अंक ४५, ४६, ४७) जैन-दिगम्बर मुनि को स्त्री वेद और नपुंसक वेद का अप्राकृतिक या निन्दनीय उदय मानना यह तो दिगम्बर विद्वानों की ज्यादती है। ऐसा वेदोदय होना यह तो नैतिक अधःपात है। यही कारण है कि-स्थानकपंथी जैन चान्दमलजी रतलामवाले ने "कल्पित कथा समीक्षा का प्रत्युत्तर' पृ० १६५ १६६ में दिगम्बर मुनि के बारे में कुछ सख्त लिख दिया है । शर्म की बात है कि दिगम्बर समाज अपने प्रागम उपलब्ध होने पर भी शास्त्रों के ताम,पर दिगम्बर मुनि के लिये पेसी झूठी बात चलाती है और For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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