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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ९८ ] २-स्वदेशेऽनक्षरम्लेछान्, प्रजाबाधा विधायिनः । कुलशुद्धि प्रदानाद्यैः स्वसाकुर्यादुपक्रमैः ॥ ७ ॥ (भा० जिनसेनीव भादिपुराण, पर्व ४२, को० ०१) ३-उच्चैर्गोत्रोदयादेरार्याः नीचैर्गोत्रादयादेश्च म्लेच्छाः (लोकवार्तिक, भ• ३, सूत्र ३०) ४-तथान्तीपजा म्लेच्छाः पर स्युः कर्मभूमिजाः ॥ कर्मभूमि भवा म्लेच्छाः प्रसिद्धा यवनादयः । स्युः परे च तदाचार-पालनाद् बहुधा जनाः ॥ (बलोक पार्तिक, पृ० ३५०) ५-आर्य खंडोगवा आर्या, म्लेच्छा केचिच्छकादयः । ___ म्लेच्छ खण्डोद्भवा म्लच्छा, अन्तरद्वीपजा अपि ॥ आर्य संडोद्भव म्लेच्छ यह आर्य भूमि की वाशिन्दा चौथे पारा की म्लेच्छ जाति है। (श्रा० अमृतचन्द्र कृत तत्वार्थसार अ० १, श्लो० २१२) ऐसे ही ऐसे अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं। सारांश-'यहाँ चौथे बारे में म्लेच्छ नहीं होते हैं' यह दिगम्बरीय मान्यता शूद्रमुक्ति के विरोध के सिलसिले में चलाई हुई कल्पना मात्र है। धह। दिगम्बर-श्वेताम्बर समाज "स्त्री मुक्ति" मानता है यह ठीक है? जैन-दिगम्बर आचार्य भी स्त्रीमुक्ति के पक्ष में है और वह सर्वथा वास्तविक ही है। दिगम्बर-स्त्री जाति में भिन्न २ प्रकार की त्रुटियां हैं अतः घो मुक्ति नहीं पा सकती हैं, जैसे कि For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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