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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RRCLEARNAGARLS १ अर्थ-एवं उक्तप्रकार करके उत्पन्न भया है दुःख जिसको ऐसे राजाके आगे शोभन पुण्यपालने वह सर्व पुत्रीका है चरित कहा कैसा है चरित आश्चर्य सहित वर्ते ऐसा ॥ ३२१॥ तं सोऊणं राया, विम्हियचित्तो गओ तमावासं । पणओ य कुमारेणं, मयणासहिएण विणएणं ॥३२२॥ ___ अर्थ-वह पुत्रीका चरित सुनके आश्चर्य पाया चित जिसका ऐसा भया थका मदनसुंदरीके आवासमें गया मदन|सुंदरी सहित श्रीपाल कुमरने विनयसे नमस्कार किया और सिंहासनपर बैठाया ॥ ३२२॥ लज्जाऽणओ नरिंदो, पभणइ धिद्धी ममं गयविवेयं । जंदप्पसप्पविसमुच्छिएण, कयमेरिसमकजं ॥३२३॥ । अर्थ-लज्जासे नम्र भए राजा बोले गया विवेक जिसका ऐसे मेरेको धिक्कार होवो धिक्कार होवो जिस कारणसे 2 अभिमानरूप सर्प उसका विष स्तब्धतालक्षण उससे मूर्छित होके मैंने ऐसा अकार्य किया ॥ ३२३ ॥ वच्छे ! धन्नासि तुमं, कयपुन्ना तंसि तंसि सविवेया। तं चेव मुणियतत्ता, जीए एयारिसं सत्तं ॥३२४॥ | अर्थ हे पुत्री तें धन्य है और कृतपुण्य है तै विवेक सहित है तथा जाना है तत्व जिसने ऐसी ही है जिसका ऐसा सत्व धैर्य है ।। ३२४ ॥ उद्धरियं मज्झकुलं, उद्धरिया जीइ निययजणणीवि।उद्धरिओजिणधम्मो, सा धन्ना तंसि परमिक्का २५] । For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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