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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ASSASSASSASSURASA तापत्ता वेरिभडा, उष्भडसत्थेहिं भीसणायारा। पुच्छंति पेडयं भो, दिट्ठा किं राणिया एगा ॥३०५॥ 8. अर्थ-उतने वैरी अजितसेन राजाका सुभट आके कोढ़ी मनुष्योंके वृन्दसे पूछे अहो तुमने क्या एकरानी देखी5 कैसे हैं सुभट उद्भट शस्त्रों करके भयंकर है आकार जिन्होंका ऐसे ॥ ३०५॥ पेडयपुरिसेहिं तओ, भणियं भो अत्थि अम्हसत्थंमि । रउताणियावि नूणं, जइ कजं ता पगिन्हेह ३०६ अर्थ-तदनंतर कोढ़ी पेटकके मनुष्योंने कहा अहो सुभटो हमारे साथमें निश्चय पामा नामकी रानी है जो तुम्हारे पामसे कार्य होवे तो अच्छी तरहसे लेवो ॥ ३०६ ॥ Pएगेण भडेण तओ, नायं भणियं च दिति मे पामं । सवं दिजइ संतं, तो कुटुभएण ते नट्ठा ॥३०७॥ अर्थ-तदनंतर एक सुभटने जाना और कहा यह कोढ़ी मनुष्य है पामा देवे है युक्त है यह जिसकारणसे सर्व विद्यमान होवे सो दिया जावे है बाद कोढ़के भयसे वह सर्व सुभट भाग गए ॥ ३०७॥ तेहिं गएहिं कमला, कमेण पत्ता सुहेण उजेणिं। तत्थ ट्ठिया य सपुत्ता पेडयमन्नत्थ संपत्तं ॥३०८॥ | अर्थ-बाद उन सुभटोंके जानेसे कमलप्रभा रानी क्रमसे चलती भई उजैनी नगरी सुखसे प्राप्त भई और पुत्रस-| ६ हित उज्जैनी नगरीमें रही कोढ़ियोंका पेडा तो और कहीं चला गया ॥ ३०८॥ है भूसणधणेण तणओ, जा विहिओ तीइ जुवणाभिमुहो। ता कम्मदोसवसओ, उंवररोगेणसो गहिओ३०९ । CAREERCISAR For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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