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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SAMSUALLAHASY अर्थ-जिन, धर्म, गुरू इन्होंका सर्वोत्कृष्ट माहात्म्य जानके कुमर श्रीपाल देव वीतराग १ गुरू शुद्धसाधु २ धर्म| सर्वज्ञका कहा हुआ निश्चयसे इन्होंकी भक्तिमें तत्पर हुआ ॥ २४७ ॥ धम्मपसाएणं चिय, जहजह माणंति तत्थ सुक्खाइं।ते दंपईउ तह तह, धम्ममि समुज्जमा निच्चं ॥२४॥ __ अर्थ-वहां उज्जैनीमें रहते हुए स्त्री भर्तार धर्मके प्रसादसेही जैसे २ सुखभोगवे वैसा २ सद्धर्मके विषय निरंतर उद्यम करे ॥ २४८॥ अह अन्नया उतेजिणहराओ, जा नीहरंति ता पुरओ। पिक्खंति अद्धवुद्धिं, एगं नारिं समुहर्मितिं ॥२४९॥ । अर्थ-उसके अनंतर स्त्री भार श्रीपाल मदनसुंदरी अन्य दिनमें जितने जिनमंदिरसे बाहिर निकले उतने आगे एक अर्ध वृद्धा स्त्रीको सामने आती भई देखी ॥ २४९ ॥ तं पणमिऊण कुमरो, पभणइ रोमंचकंचुइजंतो। अहो अणब्भा वुट्ठी, संजाया जणणिदंसणओ ॥२५०॥ | अर्थ-उस स्त्रीको नमस्कार करके श्रीपाल कुमर आनन्दसे रोमोद्गम युक्त इस प्रकारसे बोला अहो आज माताके दर्शनसे बादल विना वर्षात भया ॥ २५० ॥ है मयणाविहु पियजणणिं, नाउं जा नमइ ता भणइ कुमरो।अम्मो एस पहावो, सबो इमीए तुह ण्हुहाए। For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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