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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * * * * अर्थ-इस शांति जल करके निर्मल मनपरिणामवाले भव्योंके ग्रह, भूत, शाकिबी प्रमुख सर्व दोष ततकालही नष्ट होवे हैं ॥ २३९॥ खयकुट्ठजरभगंदर-भूया वायाविसूइयाईया । जे केवि दुटुरोगा, ते सत्वे जंति उवसामं ॥ २४० ॥ | अर्थ-क्षय, कुष्ट, ज्वर, भगंदर तथा वायु रोग और विशूचिका अजीर्णादिक जे केइ दुष्ट रोग वह सर्व उपशम होवे है अर्थात् शान्त होवे है ॥२४० ॥ जलजलणसप्पसावय, भयाइं विसवेयणा उईईओ। दुपयचउप्पय मारीउ, नेव पहवंति लोयंमि ॥४१॥ | अर्थ-जल, अग्नि, सर्प, स्वापद, सिंहादिकोंसे भय तथा विषवेदना जहरसे भई पीड़ा तथा ईति नाम उत्पात तथा मनुष्य तिर्यञ्चोंके मरीका उपद्रव लोकमें नहीं होवे ॥ २४१॥ वंझाणवि डंति सुया, निंदूणवि नंदणा य नंदति । फिटंति पुट्टदोसा, दोहग्गं नासइ असेसं ॥२४२॥ है अर्थ-वध्या स्त्रियोंकेभी पुत्र होवे मृतवत्सारोगवाली स्त्रियोंके पुत्र बड़े होवे तथा उदर दोष नष्ट होवे और है 8 सम्पूर्ण दुर्भाग्य दूर होवे ॥ २४२ ॥ | इच्चाइ पभावं निसुणिऊण, दण तं च पञ्चक्खं । लोया महप्पमोया, संति जलं लिंति सविसेसं ॥४३॥ ANCHAR * ***** For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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