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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीपाल - चरितम् ॥ ३१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ - यह उत्तम लक्षणों करके जाना जावे है यह मनुष्य निश्चय थोड़े कालसे जिन शासनकी प्रभावना करनेवाला होगा ऐसा ॥ २२७ ॥ तम्हा तुम्हं जुज्जइ, एसिं साहम्मियाण वच्छलं। काउं जेण जिणिदेहिं, वन्नियं उत्तमं एयं ॥ २२८ ॥ अर्थ - इस कारण से तुम्हारेको इन साधर्मियोंका वात्सल्य करना युक्त है इस कारणसे तीर्थंकरोंने साधर्मियोंका वात्सल्य प्रधान वर्णन किया है ॥ २२८ ॥ तो तुट्ठेहिं तेहिं, सुसाएहिं वरंमि ठाणंमि । ते ठाविऊण दिन्नं, धणकणवत्थाइयं सर्व्वं ॥ २२९ ॥ अर्थ - तदनंतर श्रीगुरूके उपदेशसे संतोष पाए हुए सुश्रावकोंने श्रीपाल मदनसुंदरीको प्रधान आवास घर वगैरह रहनेको दिया धन धान्य वस्त्रादि सर्व वस्तु देते भए । २२९ ॥ न य तं करेइ माया, नेव पिया नेव बंधुवग्गो य । जं वच्छलं साहम्मियाण, सुस्सावओ कुणइ ॥ २३० ॥ अर्थ - वह वात्सल्य माता नहीं करे पिताभी नहीं करसके और भाइयोंका समुदाय भी नहीं करे जो वात्सल्य साधर्मि सुश्रावक करे है ॥ २३० ॥ तत्थ ट्ठिओ सो कुमरो, मयणावयणेण गुरुवएसेणं । सिक्खेइ सिद्धचक्कपसिद्धपूयाविहिं सम्मं ॥ २३१ ॥ For Private and Personal Use Only भापाटीकासहितम्. ॥ ३१ ॥
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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