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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपालचरितम् ॥३०॥ भाषाटीकासहितम्. CARRECORECAS है एयमि कीरमाणे, नवपयझाणं मणमि कायव्वं । पुन्ने य तवोकम्मे, उजमणंपि हु विहेयत्वं ॥ २२० ॥ ___ अर्थ-यह तप करनेमें मनमें नवपदोंका ध्यान करना नव पदोंका जाप यहां जघन्य १३ हजार होवे है ऐसा वृद्ध कहते हैं प्रथम पदका १२०० जाप दुसरे पदका ८०० तीसरे पदका ३६०० चौथे पदका २५०० पांचवें पद २७०० छठे पदका ५०० सातवें पदका ५०० आठवे पदका १००० नवमें पदका २०० सर्व मिलानेसे १३००० होता है और है| तप पूर्ण होनेसे निश्चय उजवनाभी करना ॥ २२१ ॥ एवं च तवोकम्म, सम्मं जो कुणइ सुद्धभावेणं । सयलसुरासुरनरवर, रिद्धीउ न दुल्लहा तस्स ॥ २२१ ॥ PI अर्थ-जो प्राणी यह तप अनुष्ठान अच्छी तरहसे शुद्ध भावसे करे उस प्राणीको सर्व देवेन्द्र नरेन्द्रकी सम्पदा दुर्लभ नहीं है किंतु सुलभही है ॥ २२१॥ एयंमि कए न ह दुट्ठकुट्ठ,-खयजरभगंदराईया। पहवंति महारोगा, पुत्रुप्पन्नावि नासंति ॥ २२२॥ अर्थ-यह सिद्धचक्र आराधनरूप तपकर्म करनेसे दुष्ट कोढ़ १ क्षय २ ज्वर ३ भगंदरादि ४ महारोग नहींही उत्पन्न होवे और पूर्वोत्पन्न रोग नष्ट होवे ॥ २२२ ॥ दासत्तं पेसत्तं, विकलत्तं दोहगत्तमंधत्तं । देहकुलजुंगियत्तं, न होइ एयस्स करणेणं ॥ २२३ ॥ MISADSANSAASAR AM ॥३०॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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