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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir AAAAAAA% अर्थ-कहे प्रकारसे अत्यन्त निश्चल उस मदनसुंदरीका जो दृढ़ सत्त्व धैर्य देखने के निमित्त होवे वैसा अकस्मात् सहस्रकिरण सूर्य उदयाचल निषध पर्वतकी चूलिका शिखा उसपर प्राप्त भया अर्थात् सूर्योदय भया ॥ ७१॥ मयणाए वयणेणं, सो उवरराणओ पभायमी। तीए समं तुरंतो, पत्तो सिरिरिसहभवणंमि ॥७२॥ ___ अर्थ-तब मदनसुंदरीके बचनसे उम्बरराजा प्रभातमें अपनी स्त्रीसहित शीघ्र २ चलता हुआ श्री ऋषभदेव स्वामीके मंदिर गया ॥७२॥ आणंदपुलइअंगेहिं, तेहिं दोहिंविनमंसिओसामी।मयणा जिणमयनिउणा, एवं थोउं समाढत्ता ॥७३॥ ___ अर्थ-आनंद हर्षसे रोमोद्गम युक्त शरीर जिन्होंका ऐसे वधूवर दोनों श्री ऋषभदेव स्वामीको नमस्कार किया बाद है |जैन धर्ममें निपुण ऐसी मदनसुंदरी वक्ष्यमाण प्रकारसे स्तुति करनी प्रारंभ करी ॥ ७३ ॥ भत्तिब्भरनमिरसुरिंदविंद!,वंदियपय पढमजिणिंदचंद!। चंदुजलकेवलकित्तिपूर,पूरियभुवणंतरवेरिसूर! 81 अर्थ-भक्तिके समूहसे नम्र नमनेका स्वभाव जिन्होंका ऐसे देवेन्द्रोंका समूह उन्हों करके वंदित है चरण कमल | जिन्होंका ऐसे हेप्रथमजिनेन्द्रचन्द्र चन्द्रके जैसा आल्हाद करनेवाला और चन्द्र के जैसा उज्वल धवल सम्पूर्ण जो कीर्तिका पूर नाम यशका समूह उस करके पूरित भरा हुआ तीन लोक जिस करके उसका सम्बोधन हे चन्द्रो० और अंतरंग शत्रु काम क्रोधादिकके जीतनेमे सूर उसका संबोधन ॥ ७४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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