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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इओय नियपेडयस्स मज्झे, रयणीए उंबरेण सा मयणा।भणिया भद्दे निसुणसु, इमं अजुत्तं कयं रन्ना ६३ | अर्थ इधरसे अपना पेड़ा समुदायमें रात्रिमें उम्बरराजाने मदनसुंदरीसे इस प्रकारसे कहा हे शोभने तें सुन राजा है तेरे पिताने यह अयुक्त किया विगड़ा हुआ शरीर जिसका ऐसा मैं हूं मेरेकू दी ऐसा भाव है ॥ ६३॥ तहवि न किंपि विणटुं, अजवितं गच्छ कमवि नररयणं । जेणं होइ न विहलं, एयं तुह रूवनिम्माणं ६४ | अर्थ-तथापि कुछभी नहीं बिगड़ा है अवीभी तैं कोई श्रेष्ठ पुरुष पास जा अर्थात् कोई निरोगी पुरुषको अंगीकार कर जिससे तेरे यह रूपकी रचना निष्फल न होवे ॥ ६४ ॥ है इह पेडयस्स मज्झे, तुज्झवि चिटुंतिआइ नो कुसलं। पायं कुसंगजणियं, मज्झ वि जायं इमं कुटुं॥६५॥ PI अर्थ-इस समुदायमें रहती भई तेरेको कुशल नहीं है कैसे सो कहते हैं बहुत करके मेरेभी यह कोढ़ उत्पन्न भया है सो तेरे कभी न होजाय ॥ ६५ ॥ है तो तीए मयणाए, नयणंसुयनीरकलसवयणाए। पइपाएसु निवेसियसिराइ, भणियं इमं वयणं ॥६६॥ 1 अर्थ तदनंतर मदनसुंदरीने यह वक्ष्यमाण बचन कहा कैसी मदनसुंदरी नेत्रोंमें जो आंसूका जल उससे 3 मैला हुआ है मुख जिसका ऐसी और कैसी भर्तारके चरणों में स्थापा है मस्तक जिसने ऐसी क्या बोली सो 8 दि कहते हैं ॥६६॥ CANASOSLASHX UPHORUSSIHIATRA For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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