SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अर्थ - तथा नानाप्रकारके वर्णवाले उत्तम वस्त्रोंसे रचा है मंडप जिसमें तथा कूरादि नाम मिष्टान्नादि भोजनके ऊपर कपूर कस्तूरी सहित ताम्बूल दियाजाय जिसमें और सुवासिनी और बहुवां धवल मंगल गावें हैं जिसमें तथा वृद्धा पुत्र दोहिता दोहितियोंका परिवारवाली सधवस्त्रियोंने विवाहका विधिमार्ग कहा है जिसमें ॥ ५६ ॥ मग्गणजणदिजंतसुदाणं, सयणसुवासिणिकयसम्माणं । मद्दलवायचउप्फललोयं, जणजणवयमणिजणियपमोयं ॥ ५७ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ — तथा याचक लोगोंको शोभन दान दिया जावे जिसमें और अपने सम्बन्धी लोग और सुवासिनियोंका सन्मान बहुमान किया है जिसमें मृदंगोंका बजाना उससे बहुत लोग इकट्ठे हुए है जिसमें नगरके लोग और देशके लोगोंके मनमें किया है प्रमोद हर्ष जिसमें ऐसा ॥ ५७ ॥ कारियसुरसुंदरिसिणगारं, सिंगारियअरिदमणकुमारं । हथलेवइमंडलविहिचंगं, करमोयणकरिदाणसुरंगं ॥ ५८ ॥ अर्थ — तथा सुरसुंदरी कन्याको शृंगार कराया है जिसमें और अरिदमन कुमरको वस्त्र भूषणोंसे अलंकृत किया है जिसमें और पाणिग्रहणके समयमें ब्राह्मण करके किया जाय मंडलविधि लोक प्रसिद्ध उस करके रमणीक तथा करमोचन समयमें राजाने हाथी घोड़े वगेरेह दान दिया उस करके सुंदर ॥ ५८ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy